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रायपुर: छत्तीसगढ़ में कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ी है, लेकिन गंभीर मरीजों की संख्या पहली और दूसरी लहर की तुलना में इस बार कम देखने को मिल रही है। राहत की बात ये है कि प्रदेश में 13 हजार 66 सक्रिय मरीजों में 410 मरीज ही अस्पतालों में भर्ती है। इनमें गंभीर मरीजों की संख्या और भी कम हैं। अब तक के संकेत हैं कि नई लहर कम घातक है, और पिछली लहर की तुलना में लोग ठीक भी जल्द हो रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच 5 जनवरी को प्रदेश में पहले ओमिक्रॉन मरीज मिलने की पुष्टि भी हो गई। अब तक जो भी संकेत मिले हैं, वो यही बता रहे हैं कि प्रदेश में तेजी से बढ़ते मरीजों के पीछे ओमिक्रॉन वैरिएंट ही हैं, क्योंकि बेहद तेज संक्रमण दर, मरीजों में हल्के लक्षण, वैरिएंट की कम सीवियरिटी और हॉस्पिटलाइजेशन की कम दर इसी बात की पुष्टि करता है।
पिछले 12 दिनों में प्रदेश में जितने भी लोग पॉजिटिव आए, उनमें करीब 97 फीसदी मरीज होम आइसोलेशन में ही हैं। करीब 3.12 फीसदी लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इनमें भी एक तिहाई मरीज बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के और समान्य स्थित में हैं। स्वास्थ विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के सभी निजी और सरकारी अस्पतालों में भर्ती 210 मरीजों में 140 समान्य हालात में बिना ऑक्सीजन सपोर्ट के हैं। जबकि 178 मरीज ऑक्सीजन सपोर्ट पर, 47 आईसीयू में, 22 एचडीयू में और 23 मरीज वेंटिलेटर पर हैं, यानी करीब 2 फीसदी मरीज गंभीर हैं।
ओमिक्रॉन के दुनियाभर में दिखे ट्रेंड के आधार पर छत्तीसगढ़ में तीसरी लहर के पीक में हर दिन करीब डेढ़ लाख नए मरीज सामने आने की संभावना जताई जा रही है। तब हॉस्पिटलाइजेशन रेट 2 से 5 फीसदी के बीच भी रही तो मौजूदा तैयारी के आधार पर उस चुनौती से निपटा जा सकता है। राजधानी रायपुर में होम आइसोलेशन और मरीजों के हॉस्पिटलाइजेशन का जिम्मा संभाल रहे अधिकारी की माने तो फिलहाल होम आईसोलेशन में तबियत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती कराने का एक भी मामला नहीं आया है। अस्पताल में वही मरीज भर्ती हो रहे हैं जो या तो पहले से ही गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं, या फिर जिनका घर पर देखभाल करने वाला कोई नहीं है।
वहीं राहत की एक बात और भी है कि दूसरी लहर की तुलना में इस बार कोरोना मरीज ठीक भी जल्द और बहुत कम दवा में हो रहे हैं। दूसरी लहर में होम आइसोलेशन में ठीक होने में 15 से 20 दिन लग जा रहे थे, लेकिन इस बार मरीज 7 से 10 दिन में ही ठीक हो रहे हैं। ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में भी बदलाव कर इस बार 2 से 3 दवाएं ही लोगों को खाने के लिए दी जा रही हैं।