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N.V.News: पंचांग के अनुसार करवा चौथ का व्रत हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस साल उदिया तिथि के अनुसार करवा चौथ का व्रत 13 अक्टूबर को रखा जाएगा। वहीं इस दिन कई विशेष संयोग बन रहे हैं। जिसमें से सबसे शुभ संयोग है लक्ष्मी- नारायण योग। ज्योतिष अनुसार इस योग में पूजा करने से पति- पत्नी के बीच संबंध मधुर रहते हैं। आइए जानते हैं शुभ मुहूर्त, योग और पूजा- विधि…
रोहिणी नक्षत्र में चंद्रमा की पूजा करना शुभ फलदायी माना गया है। आपको बता दें कि वैदिक पंचाग के अनुसार करवाचौथ के दिन शाम में रोहिणी नक्षत्र 6 बजकर 41 मिनट पर आरंभ हो रहा है। इसलिए इस समय के बाद ही पूजा करना शुभ रहेगा। जिन लोगों की कुंडली में चंद्र दोष है या चंद्रमा नीच राशि में विराजमान हैं, वो लोग भी इस नक्षत्र में चंद्रमा की विशेष पूजा कर सकते हैं।
कथा सुनने का मुहूर्त
शास्त्रों के अनुसार इस दिन करवाचौथ की कथा सुनने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि अगर करवा चौथ की पौराणिक कथा महिलाएं नहीं सुनें, तो व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। इसलिए कथा का शुभ मुहूर्त इस दिन दोपहर 12 बजकर 02 मिनट से लेकर 12 बजकर 49 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहने वाला है। इस समय कथा सुनना मंगलकारी रहेगा। कथा से पहले पूजा की थाली जरूर सजा लें।
बन रहा यह विशेष संयोग
वैदिक ज्योतिष के अनुसार इस समय शनि, बुध और गुरु अपनी स्वराशि में स्थित हैं। सूर्य और बुध भी एक साथ विराजमान हैं। जिससे बुधादित्य योग का भी निर्माण हो रहा है। वहीं लक्ष्मी नारायण योग का निर्माण भी हो रहा है। इस योग के बनने से पति-पत्नी का आपसी संबंध और विश्वास मजबूत होगा। इस दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में रहेंगे। जिससे की गई प्रार्थना शीघ्र स्वीकार होगी।
पूजन विधि
करवा चौथ के दिन जल्दी उठकर स्नान करलें और फिर साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें। इसके बाद चौथ माता की पूजा का करें। फिर अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला व्रत रखें। पूजा के मुहूर्त में चौथ माता या मां गौरी और भगवान गणेश की पूजा करें। साथ ही पूजा की थाली में थाली में दीपक, सिंदूर, अक्षत, कुमकुम, रोली और चावल की बनी मिठाई या सफेद मिठाई रखें। वहीं शाम को एक करवे में जल भरकर पहले मां गौरी और भगवान गणेश की पूजा करें। वहीं चंद्रमा के उदय होने पर अर्घ्य दें और इस मंत्र – सौम्यरूप महाभाग मंत्रराज द्विजोत्तम, मम पूर्वकृतं पापं औषधीश क्षमस्व मे।’ मंत्र का जप करें। उसके बाद व्रत पारण करें।