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N.V.News रायपुर: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आज मुख्यमंत्री निवास से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सिकल सेल प्रबंधन केन्द्रों का उद्घाटन किया। इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव भी मौजूद रहे। कल टी एस बाबा राज्य के अलग-अलग संस्थानों में पहुंचकर सिकल सेल मैनेजमेंट प्रबंधन की व्यवस्थाओं का जायजा लिया था।
सिकलसेल की समस्या का प्रभावी रूप से मुकाबला करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा नवीन सिकल सेल प्रबंधन केंद्र की स्थापना की जा रही है। यह केंद्र प्रदेश के समस्त मेडिकल कॉलेज अस्पतालों एवं सभी जिला चिकित्सालयों में संचालित किए जाएंगे।
इन केन्द्रों में सिकलसेल की जांच एवं उपचार के साथ अस्पताल की प्रयोगशाला के माध्यम से साल्युबिटी टेस्ट द्वारा स्क्रीनिंग एवं इलेक्ट्रोफोरेसिस/नवीन विधि पॉइंट ऑफ केयर (पीओसी) टेस्ट द्वारा पुष्टि हेतु जांच उपलब्ध कराई जाएगी। इन केन्द्रों में विशेष रूप से उपचार प्राप्त कर रहे प्रत्येक सिकलसेल रोगी की इलेक्ट्रानिक एण्ट्री सिकलसेल संस्थान के पोर्टल में कर सूची संधारित की जाएगी एवं उन्हें नियमित फॉलो-अप एवं दवा लेने हेतु संपर्क किया जाएगा।
सिकल सेल प्रबंधन केन्द्र में संपूर्ण ब्लड काउंट टेस्ट, हीमोग्लोबिन ईलेक्ट्रोफोरेंसिस टेस्ट ताकि समान्य हीमोग्लोबिन की जांच की जा सके, यूरीन जांच ताकि किसी तरह के छिपे इंफेक्शन का पता चल सके, छाती का एक्स-रे ताकि छिपे निमोनिया का पता चल सके की सुविधा रहेगी। इसके अलावा जरूरी दवाओं की उपलब्धता भी मरीजों के लिए रहेगी।
सिकलसेल से मरीजों को इस तरह की समस्याएं होती हैं
विशेषज्ञों ने सिकलसेल बीमारी के संबंध में बताया कि यह कई बीमारियों का एक समूह है, जो खून में मौजूद हीमोग्लोबीन को प्रभावित करता है। यह एक वंशानुगत बीमारी है जो बच्चों को अपने माता पिता से मिलती है। इसमें हीमोग्लोबिन के असमान्य अणु जिन्हें हीमोग्लोबिन एस कहते हैं।
ये लाल रक्त कोशिकाओं का रूप बिगाड़ देते हैं, जिससे वह सिकल या अर्धचंद्राकार स्वरूप का हो जाता है। ऐसे बिगड़े रूवरूप की रक्त कोशिकाएं छोटी धमनियों से आसानी से गुजर नहीं पाती हैं और गुजरने की प्रक्रिया के दौरान टूट जाती हैं। कई बार से धमनियों से गुजरने के दौरान वहां फंस जाती हैं और रक्त संचरण में रूकावट पैदा करती हैं।
इस कारण मरीज को तेज दर्द महसूस होता है और कई गंभीर बीमारियां जैसे इंफेक्शन, स्ट्रोक या एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम होने का खतरा रहता है। इसके अलावा मरीज को हड्डियों और जोड़ों के क्षतिग्रस्त होने, किडनी डेमेज होने, दृष्टि संबंधी समस्याएं होने जैसी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं, सामान्य लाल रक्त कोशिकाएं जहां 90 से 120 दिन तक जीवित रहती हैं वहीं, सिकल सेल सिर्फ 10 से 20 दिन तक ही जीवित रह पाती हैं।