Share this
N.V.News रायपुर: छत्तीसगढ़ में बिहार दिवस मनाने का सरकार का हालिया निर्णय प्रदेश की जनता के बीच गहरी नाराजगी का कारण बन गया है। सवाल उठ रहा है कि जब बिहार राज्य में छत्तीसगढ़ दिवस का आयोजन नहीं किया जाता, तो फिर छत्तीसगढ़ में बिहार दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? स्थानीय जनता की यह आलोचना स्वाभाविक है, क्योंकि राज्य की सांस्कृतिक पहचान और गौरव पर सवाल उठाने वाला यह कदम उनके लिए अस्वीकार्य प्रतीत हो रहा है।
बीजेपी साय सरकार की नीतियों पर सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि यह निर्णय राज्य में सांस्कृतिक विविधता और स्थानीय अस्मिता के खिलाफ माना जा रहा है। क्या सरकार को अपनी राजनीति में इतने बड़े सामाजिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं का ध्यान नहीं रखना चाहिए?
छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है, जहां लोग अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और छत्तीसगढ़ी अस्मिता पर गर्व करते हैं। प्रदेश की लोक कला, साहित्य, और रीति-रिवाजों की एक लंबी और समृद्ध परंपरा रही है, जिसे हर छत्तीसगढ़वासी अपनी पहचान मानता है। ऐसे में बाहरी पर्वों और परंपराओं को थोपना, स्थानीय संस्कृति को दबाने की कोशिश जैसा लगता है। जनता का आरोप है कि राज्य सरकार ने सांस्कृतिक संवेदनाओं के बजाय बाहरी राजनीतिक समीकरणों को प्राथमिकता दी है।
इस निर्णय से यह भी आशंका उत्पन्न हो रही है कि क्या सरकार की प्राथमिकता छत्तीसगढ़ महतारी के सम्मान से ज्यादा राजनीतिक लाभ प्राप्त करना है। छत्तीसगढ़ी अस्मिता की रक्षा और संवर्धन के बजाय यदि बाहरी राज्यों के पर्वों को बढ़ावा दिया जाता है, तो यह प्रदेश की सांस्कृतिक एकता को कमजोर कर सकता है।
राज्य की साय सरकार को चाहिए कि वह छत्तीसगढ़ी संस्कृति और अस्मिता का सम्मान करते हुए, स्थानीय पर्वों और उत्सवों को बढ़ावा दे। साथ ही, जनता की भावनाओं का ध्यान रखते हुए, ऐसे फैसले लेने से बचें, जो राजनीतिक लाभ के बजाय सांस्कृतिक समृद्धि को प्राथमिकता दें।