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NV News :- छत्तीसगढ़ में 2023 में विधानसभा चुनाव होने है. इससे पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों ने कमर कस ली है. फिलहाल दोनों ही पार्टियां छत्तीसगढ़ की सत्ता की चाबी कहे जाने वाले बस्तर पर फोकर कर रही हैं.
बस्तर में पिछले दिनों भाजपा के विचार मंथन के कांग्रेस ने भी जिलों की कार्यसमित के साथ चर्चा की थी.
भाजपा ले रही है इलाके की टोह
बीजेपी प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी लगातार बस्तर का दौरा कर जमीनी हकीकत की टोह लेती नजर आ रही है. डी पुरंदेश्वरी 7 मार्च को एक बार फिर बस्तर के दौरे पर रहेंगी. उनके इस प्रोग्राम पर कांग्रेस ने तंज भी कसा है. कांग्रेस संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि भाजपा लाख सर पटक ले कुछ नहीं होने वाले. पिछले 15 सालों में बस्तर के साथ हुए अन्याय को लोग भूले नहीं हैं. अब वो झांसे में नहीं आने वाले.
मदमस्त हाथी में सवार है कांग्रेस
कांग्रेस नेता के बयान पर भाजपा ने भी पलटवार किया है. भाजपा नेता ने कहा कि कांग्रेस के लोग मदमस्त हाथी में सवार है. पुरंदेश्वरी प्रदेश की प्रभारी है. बस्तर में उनको रिस्पांस नहीं मिला है ये कहकर कांग्रेसी मुगालता बना रहे हैं. हम तो चाहते है उनकी ये मुगालता आखिरी तक बनी रहे. कांग्रेस की सरकार आने के बाद बस्तर हासिये पर चला गया है. वहां के लोग एक बार फिर भाजपा की वापस चाहते हैं.
क्यों फोकस में है बस्तर
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बस्तर संभाग सत्ता की चाबी माना जाता है. इसकी वजह ये है कि बीते कई चुनाव में देखा गया है कि जिस पार्टी ने बस्तर में जीत हासिल की, राज्य में उसी पार्टी की सरकार सत्ता पर काबिज हुई है. अविभाजित मध्य प्रदेश में यहां कांग्रेस ने 11 सीटों पर जीत हासिल की थी. उसके बाद 2003 के चुनावों में यहां से भाजपा ने 8 सीटे हासिल का प्रदेश में सरकार बनाई. इसके बाद 2008 में बीजेपी को यहां 11 सीटे मिली, लेकिन 2018 के चुनावों में यहां भाजपा को सूपड़ा साफ हो गया और पार्टी सत्ता से बाहर हो गई.
आदिवासी दबदबे वाला इलाका
छत्तीसगढ़ राज्य आदिवासी बहुल राज्य है, जिसकी 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं. इन 29 में से सबसे ज्यादा सीटे बस्तर संभाग में ही हैं. बता दें बस्तर जोन आदिवासी बहुल इलाका है. यहां आने वाली विधानसभा की 12 सीटो में से 11 आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं.
एक सीट सामान्य वर्ग के खाते में
बस्तर संभाग में जो 12 सीटें हैं, उनमें जगदलपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कोंटा, बस्तर, कांकेर, केशकाल, कोंडागांव, नारायणपुर, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर शामिल हैं. इनमें से केवल जगदलपुर ही सामान्य श्रेणी की सीट है.
आदिवासी मतदाताओं के हाथ में कुर्सी
माना जाता है आदिवासी मतदाता एकजुट होकर वोट करते हैं, जिसका असर पूरे राज्य में दिखाई देता है. मतलब राज्य में आदिवासी मतदाता जिस पार्टी के साथ जाएगा, उसका सरकार में आना तय है. यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए बस्तर बेहद अहम है और दोनों दल इस इलाके लिए चुनावों के एक साल पहले से ही पूरा जोर लगा रही है.