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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के हालिया अध्ययन के अनुसार, यूपी लगातार तीन बार मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की सूची में सबसे ऊपर रहा। 8 दिसंबर, 2021 को राज्यसभा में गृह मंत्रालय की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 31 अक्टूबर 2021 तक पिछले तीन वित्तीय वर्षों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा सालाना दर्ज किए गए मानवाधिकार उल्लंघन के लगभग 40 प्रतिशत [करीब आधे] मामले उत्तर प्रदेश के थे।
हिरासत में भी हिंसा
जिस तेजी से यूपी में पुलिस की बर्बरता बढ़ रही है उससे जनता के बीच डर बैठ गया है। पिछले कुछ ताजा उदाहरण हमारे सामने हैं कि यूपी पुलिस बल ने कितने क्रूर और अत्यधिक बल का सहारा लिया है, जिसमें भीड़ पर गोलियां चलाना, तमाशबीनों की पिटाई करना, हिरासत में लेना और पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को समान रूप से डिटेन और टॉर्चर करना शामिल है। हिरासत में भी हिंसा की जाती है। 11 फरवरी 2020 को, NHRC ने राज्य में हो रही क्रूरता की घटनाओं के लिए यूपी सरकार को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था। पुलिस थानों में अत्याचार इतना नियमित है कि अक्सर उसका उपयोग केवल लोगों को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। जब भी पुलिस पर हिरासत में प्रताड़ना और मौत का आरोप लगाया जाता है, तो ऐसे मामलों में निष्पक्ष जांच कम ही हो पाती है।