छत्तीसगढ़ में नई कलेक्टर गाइडलाइन पर बवाल: जमीनें 5–9 गुना महंगी, सरकार पर बिना अध्ययन फैसले का आरोप

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छत्तीसगढ़ में जारी नई कलेक्टर गाइडलाइंस ने जमीनों की कीमतों में 5 से 9 गुना तक की भारी बढ़ोतरी कर दी है। इस फैसले के बाद राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। रायपुर से BJP सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने राज्य सरकार पर बिना अध्ययन और बिना जनसुनवाई के निर्णय लेने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि यह फैसला प्रदेश की आर्थिक रीढ़ पर सीधी चोट है और इसका सीधा असर किसानों, आम उपभोक्ताओं, मध्यमवर्गीय परिवारों और छोटे कारोबारियों पर पड़ेगा।

बृजमोहन अग्रवाल ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को पत्र लिखकर इस निर्णय को तत्काल स्थगित करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि नई गाइडलाइन से भूमि अधिग्रहण में अधिक मुआवजा मिलने की बात भ्रामक है। इससे केवल 1% किसानों को फायदा होगा और 99% जनता पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा।

अग्रवाल ने कहा कि प्रदेश में जमीन की खरीद-फरोख्त पहले ही मंद है। ऐसे समय में गाइडलाइन रेट बढ़ाने से स्टांप ड्यूटी और पंजीयन शुल्क बढ़ जाएगा, जिससे आम नागरिक के लिए जमीन खरीदना और मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि बिना किसी जन-परामर्श, बिना वास्तविक मूल्यांकन और बिना सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का अध्ययन किए गाइडलाइन दरों में वृद्धि कर दी गई, जिसके बाद प्रदेश में असंतोष बढ़ रहा है।

इस मुद्दे पर कांग्रेस भी सरकार पर हमलावर है। PCC चीफ दीपक बैज ने कहा कि कांग्रेस पार्टी आने वाले दिनों में बड़ा विरोध प्रदर्शन करेगी। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने नए रेट्स जारी कर छोटे व्यापारियों को बर्बाद कर दिया है। घर बनाना अब आम आदमी के लिए एक सपना बनकर रह जाएगा।

पूर्व CM भूपेश बघेल ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि मंत्री ने दावा किया है कि यह गाइडलाइन ‘ऊपर’ से अप्रूव हुई है—तो जनता जानना चाहती है कि राज्य के कैबिनेट से ‘ऊपर’ आखिर कौन है?

वहीं व्यापारियों का कहना है कि पहले जमीन के मूल्यांकन में 30% की छूट दी जाती थी, जिससे 10 लाख की जमीन का मूल्य रजिस्ट्री के समय 7 लाख माना जाता था और 4% पंजीयन शुल्क इसी घटे हुए मूल्य पर लगता था। लेकिन अब 100% मूल्यांकन किया जा रहा है, जबकि पंजीयन शुल्क वही 4% और 2% रखा गया है। व्यापारियों की मांग है कि यदि मूल्यांकन बढ़ाकर 100% कर दिया गया है तो पंजीयन शुल्क में आनुपातिक कमी करते हुए इसे 0.8% किया जाए, ताकि बढ़ा हुआ बोझ संतुलित हो सके।

प्रदेश में नई गाइडलाइन को लेकर राजनीतिक विवाद बढ़ता जा रहा है और सरकार के सामने निर्णय पर पुनर्विचार का दबाव भी बढ़ता जा रहा है।

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