Capital raipur: ढाबों-रेस्टोरेंट्स में अवैध शराब परोसने का खेल, आबकारी और पुलिस विभाग की चुप्पी से कारोबारियों के हौसले बुलंद

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NV News :Capital raipur। राजधानी रायपुर में सरकार की नीतियों और आबकारी कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए कई ढाबा-रेस्टोरेंट्स में खुलेआम अवैध शराब परोसने का धंधा जारी है। हालात यह हैं कि ये जगहें एक बार की तरह संचालित हो रही हैं, जहां दिन-रात शराब की महफिलें सजती हैं। शनिवार और रविवार को तो स्थिति और भी रंगीन हो जाती है, जब भारी संख्या में ग्राहक जुटते हैं और बिना किसी डर-खौफ के शराब का लुत्फ उठाते हैं। सवाल यह है कि क्या यह नजारा आबकारी और पुलिस विभाग(Excise and Police Department) को दिखाई नहीं देता या फिर दोनों विभागों की आंखों पर मोटी परत चढ़ चुकी है।

Illegal liquor in Dhabas and restaurants

हाल ही में विधानसभा थाना क्षेत्र की क्राइम टीम ने अवैध शराब तस्करी के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई की थी। टीम ने सड्डू स्थित अंग्रेजी शराब दुकान के सुपरवाइजर ओम जोशी को 70 पौवा अवैध शराब के साथ गिरफ्तार किया। जांच में खुलासा हुआ कि आरोपी सरकारी शराब दुकान से शराब निकालकर एक संगठित नेटवर्क के जरिए अवैध रूप से बेच रहा था। यह नेटवर्क न केवल तस्करी करता था बल्कि पास के ढाबों और रेस्टोरेंट्स में शराब उपलब्ध कराने का काम भी करता था।

ढाबा शाबा में ‘बार’ जैसा माहौल(

Dhaba Shaba has a bar like atmosphere

इसी कड़ी में विधानसभा रोड स्थित ‘ढाबा शाबा’ का मामला खासा चर्चित है। यहां का संचालन पूरी तरह से बिना वैध लाइसेंस के हो रहा है, लेकिन माहौल किसी लाइसेंसधारी बार से कम नहीं है। ग्राहक यहां अपनी शराब की बोतल लेकर आते हैं। ढाबा संचालक बोतल से शराब निकालकर अलग प्लास्टिक बोतल में डाल देता है और खाली शीशी को बाहर कर देता है। फिर लाल प्लास्टिक के डिस्पोजल ग्लास में पैग बनाकर ग्राहकों को परोसा जाता है। इस तरह से नियमों को धता बताते हुए अवैध शराब परोसने का काम सुव्यवस्थित ढंग से किया जाता है।

गौरतलब है कि राज्य शासन ने राजस्व बढ़ाने के उद्देश्य से होटल और रेस्टोरेंट में शराब परोसने के लिए लाइसेंस प्रणाली लागू की है। लेकिन ढाबा शाबा के पास ऐसा कोई लाइसेंस नहीं है। इसके बावजूद, पुलिस और आबकारी विभाग की कथित ‘सेटिंग’ के चलते यहां का कारोबार निर्बाध रूप से चल रहा है।

राजस्व का नुकसान, अधिकारियों की जेब भरने का खेल
स्थानीय सूत्र बताते हैं कि जब इस प्रकार की शिकायतें आबकारी विभाग तक पहुंचती हैं, तो खानापूर्ति के तौर पर ढाबा संचालक पर छोटा-मोटा जुर्माना लगा दिया जाता है। यह जुर्माना उनके लिए ऊंट के मुंह में जीरे के समान है, क्योंकि एक सप्ताहांत में ही वे हजारों-लाखों रुपये कमा लेते हैं। शनिवार और रविवार को यहां ग्राहकों की भारी भीड़ रहती है, जिससे इनकी अवैध कमाई कई गुना बढ़ जाती है।

वास्तव में, शासन को मिलने वाले राजस्व का बड़ा हिस्सा इस तरह की अवैध गतिविधियों में गुम हो जाता है। जबकि अधिकारियों की जेबें भरती रहती हैं। यही कारण है कि कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दिखावा किया जाता है, और असल में इस अवैध कारोबार को बंद करने की कोई ठोस पहल नहीं होती।

राजधानी के आउटर में फैला नेटवर्क

Network spread in the outskirts of the capital

यह समस्या केवल एक ढाबा तक सीमित नहीं है। रायपुर के आउटर इलाकों में स्थित कई ढाबों और रेस्टोरेंट्स में इसी तरह अवैध रूप से शराब पिलाने का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। यहां पर भी वही पैटर्न अपनाया जाता है — ग्राहक अपनी शराब लाते हैं, संचालक उसे ‘सर्विस’ शुल्क के नाम पर परोसते हैं, और माहौल बिल्कुल बार जैसा बना रहता है।

ऐसे मामलों में न तो पुलिस की सक्रियता दिखती है, न आबकारी विभाग की सख्ती। प्रशासन नाम मात्र की कार्रवाई करके ‘खाना पूर्ति’ कर लेता है, जिससे कारोबारियों के हौसले और बुलंद हो जाते हैं।

जनता में नाराजगी, लेकिन आवाज दबा दी जाती है
स्थानीय लोगों और कुछ सामाजिक संगठनों ने इस तरह के अवैध कारोबार पर रोक लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि सामाजिक माहौल को भी खराब करता है। इन ढाबों में अक्सर शराब पीकर झगड़े और अन्य घटनाएं भी होती हैं, लेकिन पुलिस कार्रवाई से बचने के लिए मामले को दबा दिया जाता है।

जरूरी है सख्त कार्रवाई
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार वाकई में शराब नियंत्रण और राजस्व वृद्धि को लेकर गंभीर है, तो ऐसे ढाबों और रेस्टोरेंट्स पर तत्काल सख्त कार्रवाई करनी होगी। लाइसेंस रहित शराब परोसने वालों पर भारी जुर्माना और लाइसेंसधारी बार के नियमों के तहत कार्रवाई जरूरी है। साथ ही, पुलिस और आबकारी विभाग के उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए जो इस तरह के कारोबार को संरक्षण देते हैं।

अभी स्थिति यह है कि राजधानी रायपुर में अवैध शराबखोरी का खेल खुलेआम चल रहा है और शासन-प्रशासन की चुप्पी ने इसे और बढ़ावा दिया है। जब तक ईमानदारी से कार्रवाई नहीं होगी, तब तक ये ‘ढाबा-बार’ बदस्तूर रंगीन महफिलें सजाते रहेंगे और सरकारी खजाने को चुना लगाते रहेंगे।

 

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