“बेटी मेरी नहीं… इलाज महंगा है कांस्टेबल की दलील खारिज, हाई कोर्ट का आदेश देना होगा खर्च…NV News

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Bilaspur:  छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कांस्टेबल की उस पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने अपनी पत्नी और बेटी को भरण-पोषण देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। कांस्टेबल ने दावा किया था कि बच्ची उसकी जैविक संतान नहीं है और वह एचआईवी संक्रमित है, ऐसे में इलाज में आने वाले खर्च के कारण भरण-पोषण देना उसके लिए संभव नहीं है। हाई कोर्ट ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि बच्ची की शिक्षा और परवरिश के लिए भरण-पोषण जरूरी है और यह उसकी नैतिक व कानूनी जिम्मेदारी है।

पत्नी ने लगाए गंभीर आरोप:

मामला कोण्डागांव जिले का है, जहां कांस्टेबल की पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट में भरण-पोषण की मांग की थी। याचिका में महिला ने 30,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग करते हुए आरोप लगाया कि उसके पति ने उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया, अकेला छोड़ दिया और बेटी की जिम्मेदारी उठाने से भी इनकार कर दिया। फैमिली कोर्ट ने इन दलीलों और साक्ष्यों के आधार पर महिला और उसकी बेटी को भरण-पोषण देने का आदेश पारित किया।

फैसले के खिलाफ कांस्टेबल ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने कहा कि वह एचआईवी संक्रमित है और बीमारी के इलाज में हर महीने बड़ी राशि खर्च हो जाती है। इसके अलावा उसने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता महिला की बेटी उसकी संतान नहीं है, इसलिए वह उसके भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता।

हाई कोर्ट का ने किया स्पष्ट :

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकलपीठ ने कांस्टेबल की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों के साक्ष्य का गहन परीक्षण किया है। आदेश में कोई विधिक त्रुटि नहीं है और कांस्टेबल यह सिद्ध करने में असफल रहा कि बच्ची उसकी संतान नहीं है।

अदालत ने कहा कि एचआईवी संक्रमण जैसे कारण से नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता। बच्ची की देखभाल, शिक्षा और पालन-पोषण में पिता की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से तय है।

High court का निर्णय :

हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि केवल बीमारी या संतानत्व से जुड़ी शंका के आधार पर पिता अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हो सकता। अदालत ने कांस्टेबल की पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को पूरी तरह सही और न्यायसंगत ठहराया। अब कांस्टेबल को अपनी पत्नी और बेटी को भरण-पोषण देना ही होगा।

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