Share this
NV News:- हक और सम्मान की लड़ाई जीवन पर्यंत तक लड़ने वाली सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले का नाम इतिहास में अमर हो गया है। आज समाज में महिलाओं को जो शिक्षा का समान अधिकार प्राप्त है यह उनके ही प्रयासों की वजह से संभव हो सका है।
फुले ने अपने जीवन के आखिरी समय को भी मानव जाति की सेवा में लगा दिया। इस महान समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले को अब छत्तीसगढ़ के बच्चे पढ़ेंगे।
आठवीं के पाठ्यक्रम में शामिल
देश की पहली महिला शिक्षिका और समाज सेविका सावित्रीबाई फुले को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए राज्य सरकार के निर्देश के बाद राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने कक्षा आठवीं की हिंदी पुस्तक में सावित्रीबाई फुले पर नया पाठ जोड़ दिया है। परिषद के अतिरिक्त संचालक डा. योगेश शिवहरे ने बताया कि सत्र 2022-23 से किताबों में सावित्रीबाई फुले को पढ़ाने के लिए राज्य की स्थायी शिक्षा समिति ने भी अप्रूवल दे दिया है।
महाराष्ट्र में जन्मी थीं सावित्रीबाई फुले
महाराष्ट्र के सतारा जिले के गांव नायगांव गांव में तीन जनवरी 1831 को सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ था। वह भारत के पहले बालिका स्कूल की पहली प्रिंसिपल थीं। सावित्रीबाई फुले छुआछूत, बाल-विवाह, सती प्रथा और विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों का विरोध करती रही हैं। 10 मार्च 1897 को उन्होंने अंतिम सांस ली थी। इसी दिन उनकी पुण्य तिथि मनाई जाती है।
वह भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की थी।
राज्य शिक्षा की स्थायी समिति ने दी अनुमति
सावित्रीबाई फुले को पढ़ाने के लिए राज्य शिक्षा की स्थायी समिति ने अनुमति दे दी है। इसी सत्र से बच्चों को यह पाठ पढ़ने को मिलेगा। – डा. आलोक शुक्ला, प्रमुख सचिव, स्कूल शिक्षा