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NV NEWS:राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार, 13 जुलाई 2025 को चार प्रतिष्ठित हस्तियों को राज्यसभा के लिए नामित किया। ये चार नाम हैं – पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, प्रसिद्ध अधिवक्ता उज्ज्वल निकम, इतिहासकार मीनाक्षी जैन और केरल के सामाजिक कार्यकर्ता एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े C सदानंदन मास्टर। हालांकि चारों ही नाम अपने-अपने क्षेत्रों में विशिष्ट उपलब्धियों वाले हैं, लेकिन इनमें सबसे अलग और प्रेरणादायक नाम है – C सदानंदन मास्टर का, जो विचारधारा के लिए हिंसा झेलकर भी अडिग रहे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सदानंदन मास्टर को राज्यसभा में नामित किए जाने पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व ट्विटर) पर बधाई देते हुए लिखा,
“श्री C सदानंदन मास्टर का जीवन साहस और अन्याय के आगे न झुकने की प्रतिमूर्ति है। हिंसा और धमकी भी राष्ट्र विकास के प्रति उनके जज्बे को डिगा नहीं सकी। शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उनके प्रयास सराहनीय हैं। युवा सशक्तिकरण के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता है।”
कौन हैं C सदानंदन मास्टर?
61 वर्षीय C सदानंदन मास्टर केरल के कन्नूर जिले से ताल्लुक रखते हैं। पेशे से शिक्षक रहे सदानंदन मास्टर लगभग पांच दशक से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं। उनके परिवार की पृष्ठभूमि पूरी तरह वामपंथी रही है – उनके पिता और भाई दोनों सक्रिय कम्युनिस्ट थे, यहां तक कि उनके भाई वामपंथी छात्र संगठन SFI के प्रमुख काडर थे। लेकिन इसके बावजूद सदानंदन मास्टर का झुकाव बचपन से ही संघ की ओर था।
एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि 12वीं तक वह नियमित रूप से संघ के कार्यों में लगे रहते थे। कॉलेज पहुंचने पर वे कुछ समय के लिए कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित हुए और उसमें शामिल भी हुए। लेकिन उनका मन वहां नहीं रमा। मलयालम के प्रसिद्ध कवि की एक कविता “भारत दर्शनांगल” पढ़ने के बाद उनका राष्ट्रवाद की ओर विश्वास और मजबूत हुआ और उन्होंने पूर्ण रूप से संघ के कार्यों में वापसी कर ली।
1994 की वह भयानक रात, जिसने पूरी ज़िंदगी बदल दी
सदानंदन मास्टर उस समय मात्र 30 वर्ष के थे, जब वामपंथी हिंसा का वे शिकार बने। 25 जनवरी 1994 की शाम थी, जब वे अपनी बहन की शादी की तैयारियों पर चर्चा करने के बाद चाचा के घर से लौट रहे थे। जैसे ही उन्होंने बस से उतरकर घर की ओर चलना शुरू किया, कुछ लोग उनका पीछा करते हुए आ गए।
ये लोग CPI(M) के कार्यकर्ता थे। उन्होंने मास्टर पर बेरहमी से हमला कर दिया। मारपीट के बाद सड़क पर ही धारदार हथियारों से उनके दोनों पैर काट दिए गए। इतना ही नहीं, भीड़ में कोई हस्तक्षेप न कर सके, इसलिए हमलावरों ने एक बम धमाका भी किया जिससे लोग डर कर भाग गए। इस अमानवीय हमले का उद्देश्य सिर्फ एक था – विचारधारा छोड़ने की ‘सजा’ देना।
उन्हें उसी हालत में छोड़ दिया गया। बाद में पुलिस और कुछ स्थानीय लोगों ने अस्पताल पहुंचाया, लेकिन हालत नाजुक थी। उनके दोनों पैर गंभीर रूप से कट चुके थे और डॉक्टरों ने उन्हें प्रोस्थेटिक पैरों की सलाह दी।
दूसरी जिंदगी की शुरुआत: नकली पैरों से फिर खड़े हुए
इलाज के बाद डॉक्टरों ने उन्हें नकली पैर लगाए। उन्होंने 6 महीनों में इन्हें पहनकर चलना सीख लिया। और यही नहीं, उन्होंने अपने जीवन को फिर से राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित कर दिया। संघ के कार्यों में उन्होंने फिर से सक्रिय भागीदारी ली और युवाओं को प्रेरित करने में लगे रहे।
उनका यह संघर्ष सिर्फ शारीरिक नहीं था, बल्कि मानसिक और सामाजिक रूप से भी एक बड़ी परीक्षा थी। उन्होंने कभी भी अपने ऊपर हुए अन्याय को लेकर शिकायत नहीं की, बल्कि उसे अपने विचार और संकल्प की दृढ़ता का प्रमाण बनाया।
एक शिक्षक, एक विचारक और अब सांसद
सदानंदन मास्टर का जीवन सिर्फ एक विचारधारा से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह जीवन शिक्षा, सेवा और समर्पण का प्रतीक बन गया है। उन्होंने जीवनभर शिक्षक के रूप में कई पीढ़ियों को गढ़ा और अब राज्यसभा में पहुंचकर राष्ट्र की नीतियों में भी अपना योगदान देंगे।
उनकी राज्यसभा में मनोनयन सिर्फ एक व्यक्ति का सम्मान नहीं है, बल्कि यह उन तमाम लोगों का उत्सव है, जो अपने विचार और राष्ट्र के प्रति निष्ठा के लिए तमाम कष्ट झेलकर भी पीछे नहीं हटते।
राजनीति से ऊपर एक संदेश
C सदानंदन मास्टर का राज्यसभा तक पहुंचना इस बात का प्रमाण है कि विचारधारा के प्रति निष्ठा, साहस और सेवा भाव अंततः मान्यता पाता है। यह कदम उन लोगों के लिए भी संदेश है, जो राजनीतिक असहिष्णुता और वैचारिक टकराव से डरते हैं। सदानंदन मास्टर ने दिखाया कि हिंसा, अपंगता और सामाजिक बहिष्कार के बाद भी कोई व्यक्ति राष्ट्र और समाज के लिए कार्य कर सकता है और सर्वोच्च मंचों तक पहुंच सकता है।
निष्कर्ष
C सदानंदन मास्टर का नाम राज्यसभा के लिए मनोनीत होना केवल एक राजनीतिक घटनाक्रम नहीं, बल्कि यह भारत की लोकतांत्रिक भावना, सहिष्णुता और विचारों की स्वतंत्रता की जीत है। उनके जीवन की कहानी आज के युवाओं को यह संदेश देती है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर विचार और उद्देश्य पवित्र हों तो रास्ते खुद बनते जाते हैं।
यह नाम उन तमाम शिक्षकों, कार्यकर्ताओं और स्वयंसेवकों के लिए प्रेरणा है जो देश सेवा को अपने जीवन का ध्येय मानते हैं। सदानंदन मास्टर न केवल एक सांसद होंगे, बल्कि राज्यसभा में बैठा एक संदेश होंगे – कि राष्ट्र सर्वोपरि है और साहस कभी व्यर्थ नहीं जाता।