Raipur Breaking: डॉक्टरों की स्थायी भर्ती अटकी, सुपरस्पेशलिस्ट पदों पर भारी कमी…NV News

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Raipur Breaking: छत्तीसगढ़ के सरकारी सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी अब राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। रायपुर और बिलासपुर के सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों में स्वीकृत 135 पदों में से 95 पद रिक्त हैं,यानी 70 प्रतिशत विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं हो पाई है। इसका सीधा असर मरीजों के इलाज और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर पड़ रहा है।

राजधानी रायपुर के दाऊ कल्याणसिंह पोस्ट ग्रेजुएट एवं रिसर्च सेंटर और बिलासपुर के कुमार साहब स्व.दिलीप सिंह जूदेव सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में यह स्थिति सबसे गंभीर है। रायपुर में 57 पदों में से 32 पर ही डॉक्टर कार्यरत हैं, जबकि बिलासपुर में 78 पदों में से केवल 8 पद भरे हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि, डॉक्टरों की कमी के कारण सुपर स्पेशलिटी वार्ड नाममात्र के रह गए हैं। मरीजों को सामान्य चिकित्सकों के भरोसे छोड़ा जा रहा है या उन्हें बड़े शहरों में रेफर किया जा रहा है। पिछले एक साल में रायपुर के डीकेएस अस्पताल से छह से अधिक डॉक्टर इस्तीफा दे चुके हैं।

मेडिकल कॉलेजों में भी गंभीर हालात:

राज्य के दस शासकीय मेडिकल कॉलेजों और रायपुर डेंटल कॉलेज में भी डॉक्टरों की भारी कमी है। कुल 2,160 स्वीकृत पदों में से 1,155 पद खाली हैं, जो लगभग 54 प्रतिशत रिक्ति दर्शाता है।

कुछ प्रमुख कॉलेजों की स्थिति इस प्रकार है:

रायपुर: 416 में से 242 कार्यरत, 174 पद खाली।

दुर्ग: 164 में से 49 कार्यरत, 115 रिक्त।

कांकेर: 148 में से 30 कार्यरत, 118 रिक्त।

कोरबा: 150 में से 58 कार्यरत, 92 रिक्त।

बिलासपुर: 255 में से 123 कार्यरत, 132 रिक्त।

यानी लगभग हर मेडिकल कॉलेज में आधे से ज्यादा पद खाली पड़े हैं।

कमी के पीछे कारण:

स्वास्थ्य शिक्षा से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि,समस्या की जड़ स्थायी नियुक्ति की कमी और पीजी सीटों की सीमित संख्या है। राज्य में एमबीबीएस की 2,180 सीटें हैं, लेकिन पीजी की केवल 497 सीटें (सरकारी में 311 और निजी में 186) उपलब्ध हैं। यानी डॉक्टरों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन विशेषज्ञ बनने का अवसर सीमित है।

साथ ही, सरकारी बांड नियम भी बड़ी बाधा बन रहा है। बांड के कारण कई एमबीबीएस पास विद्यार्थी आगे की पढ़ाई या सुपर स्पेशलिटी कोर्स में दाखिला नहीं ले पाते। इससे राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों की नई पीढ़ी तैयार नहीं हो पा रही है।

भर्ती नियमों पर विवाद:

राज्य सरकार ने 2019 में “छत्तीसगढ़ स्वशासी चिकित्सा महाविद्यालीय शैक्षणिक आदर्श सेवा भर्ती नियम” लागू किया था, जिसके तहत संविदा में कार्यरत चिकित्सा शिक्षकों को नियमित करने का प्रावधान है। लेकिन नियमित चिकित्सकों ने इसे वरिष्ठता और पदोन्नति पर प्रभाव डालने वाला बताते हुए हाई कोर्ट में चुनौती दी है। मामला वर्तमान में विचाराधीन है, जिसके कारण नियुक्ति प्रक्रिया अटकी हुई है।

विशेषज्ञों और अधिकारियों की राय:

• डॉ. रेशम सिंह, अध्यक्ष, जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन रायपुर ने कहा, एमबीबीएस सीटें बढ़ने के बावजूद पीजी सीटें बहुत कम हैं। बांड नियम की वजह से डॉक्टर सुपर स्पेशलिटी की पढ़ाई नहीं कर पा रहे। इसका असर सीधे मरीजों की देखभाल पर पड़ता है।

• वहीं शिखा राजपूत तिवारी, आयुक्त, चिकित्सा शिक्षा, छत्तीसगढ़ ने बताया,“डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए लगातार प्रयास जारी हैं। शासन को भर्ती और नियुक्ति से संबंधित प्रस्ताव भेजे गए हैं। नियमों पर अंतिम निर्णय राज्य स्तर पर लिया जाएगा।

जरूरत ठोस कदमों की:

राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को सुचारू बनाने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति और प्रशिक्षण दोनों जरूरी हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को स्थायी भर्ती प्रक्रिया तेज करनी चाहिए, साथ ही पीजी सीटों में बढ़ोतरी और बांड नियम में संशोधन भी आवश्यक है।अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ की सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था और भी गंभीर संकट का सामना कर सकती है।

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