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N.V.News रायपुर: रायपुर नगर निगम द्वारा ज़ोन क्रमांक-10 के अंतर्गत आने वाले ऐतिहासिक पचपेड़ी नाका चौक का नाम बदलकर ‘संत बाबा गोदड़ी वाला चौक’ किए जाने की प्रक्रिया ने प्रदेश में विवाद का नया मोर्चा खोल दिया है। यह प्रस्ताव ब्रह्म स्वरूप संत बाबा गेलाराम ट्रस्ट एवं गोदड़ी वाला धाम, देवपुरी की मांग पर लाया गया था, जिसे नगर निगम ने आगे बढ़ा दिया। लेकिन इस फैसले को लेकर अब जनता, सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों की तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि पचपेड़ी नाका चौक न केवल एक यातायातिक केंद्र है, बल्कि रायपुर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है। चौक का यह नाम दशकों से प्रचलित है और लोगों की स्मृति में गहराई से जुड़ा हुआ है। ऐसे में बिना जनता की राय लिए चौक का नाम बदल देना प्रदेश की अस्मिता का अपमान है। पचपेड़ी नाका चौक का नाम बदलने को लेकर राज्य की जनता ने बीजेपी सरकार के इस फैसले का प्रखर रूप से विरोध किया जा रहा है। पचपेड़ी नाका चौक का नाम बदलकर गोदड़ी वाला चौक करने के फैसले से प्रदेश में क्षेत्रीय भावना उभर आई है, जिससे सामाजिक और राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं देखी जा रही हैं।
इस मुद्दे पर सबसे मुखर विरोध छत्तीसगढ़ प्रदेश साहू संघ (युवा प्रकोष्ठ) और कई सामाजिक संगठनों की ओर से आया है। उन्होंने नगर निगम ज़ोन-10 में विधिवत आपत्ति पत्र दाखिल करते हुए मांग की है कि इस प्रस्ताव को तुरंत रद्द किया जाए। उनका कहना है कि चौक का नाम बदलने की मांग केवल एक ट्रस्ट की तरफ़ से आई, जबकि जनभावना इसके विरोध में है।
इस बीच छत्तीसगढ़ के प्रख्यात आरटीआई एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला ने भी इस नामकरण को लेकर नगर निगम के ज़ोन आयुक्त को पत्र लिखकर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने पत्र में यह साफ किया है कि यह निर्णय जनता की राय और स्थानीय इतिहास को नजरअंदाज करके लिया गया है, जो प्रशासनिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है। कुणाल शुक्ला ने चेतावनी दी है कि अगर इस विषय पर पुनर्विचार नहीं हुआ तो वे न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाएंगे।
इस विषय पर जनमानस की राय भी लगातार सोशल मीडिया के ज़रिए सामने आ रही है। ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर #SavePachpedinaka और #PublicVoiceMatters जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। लोग वीडियो, पोस्ट और मैसेज के माध्यम से प्रशासन से सवाल पूछ रहे हैं कि क्या भविष्य में किसी भी चौक या सार्वजनिक स्थल का नाम बदलने के लिए केवल एक संस्था की सिफारिश ही काफ़ी होगी?
इस बीच कई सामाजिक प्रतिनिधियों ने यह भी सुझाव दिया है कि अगर नाम बदलना ही है, तो उसे किसी ऐसे छत्तीसगढ़ी महापुरुष या प्रदेश के किसी स्वतंत्रता सेनानी के नाम पर किया जाए, जो इस भूभाग की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान से जुड़ा हो। माता राजिम, पंडित सुंदरलाल शर्मा, गुंडाधुर, या शहीद वीर नारायण सिंह, गुरु घासीदास, बालकदास जैसे नामों की मांग की जा रही है, जिनका योगदान जनमानस के हृदय में बसता है।
स्थानीय निवासी पूछ रहे हैं कि जब बहुसंख्यक लोग इस परिवर्तन का विरोध कर रहे हैं, तो नगर निगम रायपुर आखिर किसके दबाव में काम कर रहा है? क्या यह लोकतंत्र में एकतरफा फैसला नहीं है? क्या रायपुर की जनता की आवाज़ का कोई महत्व नहीं रह गया है?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद अब केवल नामकरण तक सीमित नहीं रहा। यह अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता, जनता की भागीदारी, और प्रशासनिक जवाबदेही का प्रश्न बन गया है। अगर समय रहते प्रशासन ने इस पर जनता की भावनाओं का सम्मान नहीं किया, तो यह मामला सरकार की साख पर भी असर डाल सकता है।
आम जनता और नागरिक संगठनों ने सार्वजनिक जनसुनवाई या जनमत संग्रह की मांग करते हुए कहा है कि प्रशासन को यह निर्णय लेने से पहले स्थानीय लोगों की राय जाननी चाहिए थी। इस प्रक्रिया की अनदेखी करके नगर निगम ने एक बड़ी चूक की है, जो आने वाले समय में आंदोलन और विरोध की राह को खोल सकती है।
पचपेड़ी नाका चौक के नामकरण को लेकर जो विवाद सामने आया है, वह एक गहरी प्रदेश की अस्मिता व क्षेत्रीय पहचान की बहस को जन्म दे चुका है। जनता अब सिर्फ़ चौक के नाम पर नहीं, बल्कि अपने अधिकारों और प्रदेश की अस्मिता की रक्षा के लिए आवाज़ उठा रही है। देखने वाली बात यह होगी कि क्या रायपुर नगर निगम जनता की इस आवाज़ को सुनेगा, या फिर लोकतंत्र के नाम पर यह एक और एकतरफा फैसला बनकर रह जाएगा।