एक करोड़ का इनामी माओवादी माड़वी हिड़मा ढेर: छत्तीसगढ़-तेलंगाना बॉर्डर पर बड़ी मुठभेड
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छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र से बड़ी खबर सामने आई है। लंबे समय से खूनी वारदातों को अंजाम देने वाला खूंखार माओवादी और माओवादियों की समिति का सीसी सदस्य माड़वी हिड़मा सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में ढेर हो गया है। उस पर ₹1 करोड़ का इनाम घोषित था। हिड़मा के मारे जाने की आधिकारिक पुष्टि तेलंगाना के DGP ने भी कर दी है।
सूत्रों के मुताबिक यह मुठभेड़ आज सुबह छत्तीसगढ़–तेलंगाना बॉर्डर पर हुई। अभियान में सुरक्षाबलों ने उसकी पत्नी और सक्रिय महिला माओवादी सदस्य राजे को भी मार गिराया है। इसे नक्सल उन्मूलन अभियान में इस साल की दूसरी बड़ी सफलता माना जा रहा है। इससे पहले मई 2024 में नक्सलियों के टॉप लीडर बसवाराजू उर्फ केशव नम्बाला को भी सुरक्षाबलों ने ढेर किया था।
जंगल में ली गई आखिरी सेल्फी हुई वायरल:-
हिड़मा की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। दावा किया जा रहा है कि यह फोटो उसने एनकाउंटर से कुछ देर पहले जंगल के भीतर बैठकर ली थी।
सुकमा में जश्न—जगह-जगह आतिशबाजी:-
हिड़मा के मारे जाने के बाद उसके गृह जिले सुकमा में लोगों ने जमकर आतिशबाजी की। नक्सली लीडर के खात्मे को सुरक्षाबलों की ऐतिहासिक सफलता माना जा रहा है। कई गांवों में पुलिस कैंपों में खुशी का माहौल देखने को मिला।
कैसी थी हिड़मा की सुरक्षा व्यवस्था?
- हिड़मा माओवादी संगठन में एक बेहद महत्वपूर्ण चेहरा था। उसकी सुरक्षा व्यवस्था बेहद सख्त और तीन स्तरीय होती थी।
- उसके साथ तीन सेक्शन—A, B और C के अंगरक्षक तैनात रहते थे।
- हर सेक्शन में 10-10 माओवादी होते थे, जो AK-47 और इंसास जैसे घातक हथियारों से लैस रहते थे।
- उसका खाना भी सिर्फ उसके बॉडीगार्ड ही बनाते थे।
- उससे मिलने की इजाजत केवल एरिया कमेटी मेंबर (ACM) या उससे ऊपर के पदाधिकारियों को ही होती थी।
कौन था माड़वी हिड़मा?
- माड़वी हिड़मा उर्फ संतोष, उर्फ इंदमुल, उर्फ पोडियाम भीमा—माओवादी संगठन का सबसे कुख्यात और रणनीतिक कमांडर था।
- वर्ष 2017 में वह सबसे कम उम्र में माओवादियों की केंद्रीय समिति (CC Member) में शामिल किया गया।
- वह अपने कद-काठी से नहीं बल्कि रणनीति और तेज निर्णय क्षमता के लिए जाना जाता था।
- उसके बाएं हाथ की एक अंगुली नहीं थी, जो उसकी पहचान का प्रमुख निशान था
- उसकी अंग्रेजी बोलने की क्षमता और नोटबुक में लगातार विचार लिखते रहने की आदत ने उसे संगठन में एक खास जगह दिलाई थी।
कैसे बना नक्सली?
हिड़मा का जन्म सुकमा जिले के दुर्गम पूवर्ती गाँव में हुआ था, जहाँ वर्षों तक नक्सलियों की जनताना सरकार का शासन चलता रहा।
कम उम्र से ही वह माओवादी विचारधारा के संपर्क में आया और उसी वातावरण में पला-बढ़ा।
35 सालों से था संगठन में सक्रिय :-
हिड़मा वर्ष 1990 में मामूली लड़ाके के रूप में संगठन से जुड़ा।
उसके नाम कई बड़ी घटनाएँ दर्ज हैं—
- 2010 ताड़मेटला हमला: 76 CRPF जवान शहीद
- 2013 जीरम घाटी हमला: 31 लोगों की मौत
- 2017 बुरकापाल हमला: 25 CRPF जवान शहीद
- हिड़मा को इन सभी वारदातों का मुख्य मास्टरमाइंड माना जाता था।
आज उसके मारे जाने के साथ सुरक्षा बलों ने माओवादी संगठन को सबसे बड़ा झटका दिया है।
