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नारायणपुर के भरंडा गांव में 23-24 जनवरी की रात हुई कथित मुठभेड़ में मारे गए सिविलियन के परिजनों ने बड़ा आरोप लगाया है। मृतक मानूराम नुरेटी की पत्नी मानवती का दावा है कि उसके पति को पहचान लेने के बाद भी डीआरजी के जवानों ने गोली मारी है। उसके बाद उन्हें इनामी नक्सली बता दिया गया। परिवार को अभी तक मानूराम की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं दी गई है। अब पुलिस प्रशासन उनके परिवार पर दबाव बना रहा है कि वे लोग कार्रवाई का दबाव न बनाएं।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर कार्रवाई की गुहार लगाने रायपुर पहुंची मानवती ने बातचीत के दौरान कही। उनका कहना था, 23 जनवरी की शाम 7 बजे उनके पति कुछ दाेस्तों के साथ गांव के जंगल में शिकार करने गए थे। रात में गोलीबारी की आवाज आई। यह करीब एक से दो मिनट तक रही। सुबह डीआरजी में तैनात उनके जेठ रैनू ने घर पर फोन कर बताया, मानूराम की पुलिस गोलीबारी में मौत हो गई है और शव को नारायणपुर पुलिस लाइन लाया गया है। वे लोग नारायणपुर पहुंचे तो पुलिस उन्हें नक्सली बता रही थी।
अधिकारियों को बताया गया कि मानू नक्सली नहीं है, वह तो बस्तर फाइटर्स में भर्ती होना चाहता था। बाद में डीआरजी के ही कुछ लोगों ने उन्हें बताया, उस रात जंगल में डीआरजी की जो टीम गई थी, उसमें 5-5, 6-6 लोगों का ग्रुप अलग-अलग था। उनमें से एक ग्रुप के साथ उनके पति और साथियों की मुलाकात हुई। वे लोग से वनमुर्गी की तलाश में भटक रहे थे। उन लोगों को देखकर पुलिस वालों ने गोली चलाई। इस बीच पुलिस का दूसरा ग्रुप भी वहां पहुंच गया था। उन लोगों ने मानू को पहचान लिया कि वह डीआरजी जवान रैनू का भाई है। पहचान हो जाने के बाद भी पुलिस वालों ने उनके पति काे गाेली मारी। उन्हें नक्सली बताया और अपनी बात को साबित करने के लिए नक्सली साहित्य और भरमार बंदूक की बरामदगी बता दी। दबाव बढ़ा तो पुलिस यह तो स्वीकार कर रही है कि मानूराम नक्सली नहीं थे, लेकिन अब कहा जा रहा है, वहां नक्सली थे। क्रॉस फायरिंग में सिविलियन मानूराम नुरेटी की मौत हुई है।
अब परिवार पर दबाव बना रही है पुलिस
मानवती ने बताया, 15 फरवरी को उसने भरंडा थाने में पति की हत्या की शिकायत की। मजिस्ट्रेट जांच में एसडीएम के सामने भी शपथपत्र दिया। उसके बाद पुलिस उनके परिवार पर दबाव बना रही है। कहा जा रहा है, वे किसी से मामले की शिकायत न करें नहीं तो मानू को नक्सली साबित कर दिया जाएगा। परिवार को पांच लाख रुपए का मुआवजा भी नहीं मिलेगा। परिवार अब मानू के भाई रैनू की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित है, जो डीआरजी में पदस्थ है और रात में गश्त पर भी जाता है।
नोटरी एफिडेविट पर हस्ताक्षर कराए हैं
मानूराम नुरेटी के मौसेरे भाई सोमारू ने बताया, एक दिन पुलिस के लोग पूरे परिवार को कार मे बिठाकर ले गए थे। कोर्ट ले जाकर उनसे एक नोटरी एफिडेविट पर हस्ताक्षर कराया गया है। उसपर क्या लिखा है वह पढ़ने का भी मौका नहीं दिया गया। परिवार वह एफिडेविट मांग रहा है तो वह भी नहीं दिया जा रहा है। सोमारू ने बताया, पुलिस मुआवजे के पांच लाख रुपए के बंटवारे का भी दबाव बना रही है। जबकि यह हमारा पारिवारिक मसला है।
खुद नक्सलियों से पीड़ित रहा है परिवार
मानूराम के परिजनों का कहना था, उनका परिवार खुद नक्सलियों से पीड़ित रहा है। वे लोग कांकेर के अंतागढ़ ब्लॉक के घोटिया गांव में रहते थे। 2013 में नक्सलियों ने उनके साथ मारपीट की थी। उसके बाद वे लोग नारायणपुर में रहने लगे थे। 2021 में उनका परिवार पूर्वजों की जमीन भरंडा में खेती करने के लिए आकर रहने लगा था।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने की है जांच
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने एक फैक्ट फाइंडिंग टीम भरंडा भेजी थी। इसमें केशव शोरी, शालिनि गेरा और बेला भाटिया शामिल थीं। इस टीम ने पीड़ित परिवार, स्थानीय ग्रामीणों और पुलिस अफसरों से भी चर्चा और घटना स्थल का दौरा कर अपना निष्कर्ष दिया है। इसमें कहा गया है, मानूराम नुरेटी की मौत पुलिस की फायरिग में हुई है, किसी मुठभेड़ की क्रॉस फायरिंग में नहीं। पुलिस ने झूठी एफआईआर दर्ज कर फर्जी जब्ती दिखाई है। अब तथ्य छिपाने के लिए पुलिस परिवार पर दबाव बना रही है।
जांच दल और परिवार ने यह मांग रखी है
- स्वतंत्र एजेंसी अथवा न्यायिक आयोग से घटना की जांच कराई जाए और जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए।
- मृतक की पत्नी की ओर से दी गई शिकायत पर FIR दर्ज किया जाए और घटना में शामिल पुलिसकर्मियों पर हत्या का मुकदमा चले।
- मजिस्ट्रियल जांच को समय सीमा में पूरा कर उसका निष्कर्श समाज के सामने रखा जाए।
- मृतक की पत्नी और परिवार पर कोई दबाव नही डाला जाए।
- मृतक की पत्नी को बिना किसी शर्त और दबाव के मुआवजा दिया जाए।