छत्तीसगढ़ में दो दशक से सिंचाई सुविधाओं में कमी से खेती-किसानी की कठिनाई का सहज,बांधों की सहायता से आधे क्षेत्र में हो रही सिंचाई..NV न्यूज

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NV News CG Election Issue रायपुर : लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर छत्तीसगढ़ में सिंचाई का मुद्दा चर्चा में है। प्रदेश में सबसे अधिक मतदाता किसान हैं और वही अपने हक के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले दो दशकों से प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में खेतों की सिंचाई का मुद्दा जीवंत है। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश में अभी बांधों की क्षमता 21.40 लाख हेक्टेयर की भूमि को सिंचित करने की है मगर सिंचाई केवल 11 लाख हेक्टेयर भूमि की ही हो पा रही है।

 

CG Election Issue पिछले वर्षों में जिस गति से छत्तीसगढ़ के जल संसाधन विभाग को नहर-नालियों के साथ नए बांधों का निर्माण करना था, वह नहीं हो पाया है। राज्य निर्माण के बाद प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी, दूसरे डा.रमन सिंह और तीसरे भूपेश बघेल रहे हैं , इन सबके कार्यकाल में सिंचाई क्षमता बढ़ाने की कोशिश हुई मगर जितनी क्षमता है, उतनी नहीं हो पाई। अब प्रदेश के चौथे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार से काफी उम्मीद है।

 

CG Election Issue बता दें कि प्रदेश में अभी 12 बड़ी सिंचाई परियोजनाओं से लेकर छोटे-बड़े करीब तीन हजार बांध हैं। इसके अलावा भी बांधों के निर्माण की आवश्यकता है। बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर जैसे इलाकों में सिंचाई की सुविधा केवल 15 प्रतिशत ही है। इसके अलावा रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग और सरगुजा संभाग में भी सिंचाई की सुविधा का अभाव है। प्रदेश में नहरों के अलावा अन्य संसाधनों जैसे नलकूप, सिंचाई पंप मिलाकर कुल 15.99 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है।

 

जोगी सरकार में इतनी हुई सिंचाई क्षमता

पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के समय वर्ष 2000 में प्रदेश में जल संसाधन के बांधों और नहरों में 13.28 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता थी। उस समय कांग्रेस की सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने इसका विस्तार किया और राज्य में निर्मित सिंचाई क्षमता 15 लाख 51 हजार हेक्टेयर पहुंची

 

डा. रमन के कार्यकाल में यह रही स्थिति

पूर्व मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह के समय राज्य में निर्मित सिंचाई क्षमता 15 लाख 51 हजार हेक्टेयर को बढ़ाकर वर्ष 2018 में 20 लाख 88 हजार हेक्टेयर तक पहुंचाया गया। हालांकि उनके कार्यकाल में भी वास्तविक सिंचाई क्षमता केवल 10 लाख 38 हजार हेक्टेयर ही हो पाई थी।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समय ये रही स्थिति

कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समय 2018 से 2023 तक सिंचाई क्षमता 21.40 लाख हेक्टेयर रही है। जानकारों का कहना है कि कुछ वर्तमान परियोजनाओं को पूरा करके सिंचाई क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।

 

अरपा भैंसाझार प्रोजेक्ट की आठ साल से उम्मीद: बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में अरपा भैंसाझार प्रोजेक्ट को सबसे पहले छह जून 2012 को 606.43 करोड़ रुपये की मंजूरी मिली थी।

 

चार साल बाद वर्ष 2016 में इस प्रोजेक्ट की लागत 1,141.90 करोड़ रुपये हो गई, लेकिन 2020तक आठ साल बाद भी यह परियोजना पूरी नहीं हो पाई है। साथ ही इसकी मुख्य नहर से संबंधित शाखा नहरों का काम भी अधूरा है। परियोजना की लागत 326.45 करोड़ है। परियोजना के पूरा होने पर ढ़ाई हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी। अरपा भैंसाझार वृहद परियोजना के तहत जिले के कोटा, तखतपुर और बिल्हा विकासखंड के 102 गांवों के 25 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी। परियोजना के अंतर्गत अभी तक 157 भूअर्जन प्रकरणों में 380.55 करोड़ रुपये का अवार्ड पारित किया गया है।

 

नहीं सुलझ पाया महानदी की मुद्दा

छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच महानदी के पानी को लेकर विवाद 1983 से चल रहा है।(CG Election Issue) केंद्रसरकार ने संबलपुर में हीराकुंड बांध का निर्माण कराया था और इसे ओडिशा सरकार को सौंपा था। हीराकुंड बांध महानदी पर बना है, जो छत्तीसगढ़ से बहकर ओडिशा में प्रवेश करती है। 2016 में यह विवाद ज्यादा बढ़ा जब ओडिशा ने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ में महानदी पर कई बांध बना दिए गए हैं, जिससे नदी की धारा प्रभावित हुई है। हीराकुंड बांध में जलभराव कम हुआ है। छत्तीसगढ़ का पक्ष रहा है कि हीराकुंड बांध के लिए निर्धारित मात्रा से कहीं अधिक पानी का इस्तेमाल हो रहा है। पानी के बंटवारे का विवाद अभी भी नहीं सुलझा है।

 

लिफ्ट एरिगेशन बंद होने से नदी किनारे बसे

संसदीय क्षेत्र के दुर्ग जिले में कृषि का सिंचितरकबा दो लाख 45 हजार 298 हेक्टेयर है, लेकिन नदी किनारे बसे बरदा, चंगोरी, अंजोरा, नगपुरा, दमोदा, खुरसुल, गनियारी जैसे दर्जन भर गांवों में सिंचाई का साधन नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कार्यकाल में ऐसे क्षेत्रों में सिंचाई के लिए लिफ्ट एरिगेशन की व्यवस्था बनाई गई थी।

 

11 लिफ्ट एरिगेशन बनाया गया था। जिससे नदी से पानी खींचकर खेतों में सिंचाई की जाती थी, लेकिन सरकार बदलने के बाद इसे बंद कर दिया गया। कांग्रेस शासन काल में पिछली बजट में शिवनाथ से पानी लिफ्ट करने की योजना के लिए प्रविधान किया गया था। बोरई के पूर्व सरपंच रिवेंद्र यादव ने बताया कि इस क्षेत्र में करीब 15,000 एकड़ कृषि रकबा है जहां सिंचाई के साधन नहीं है।

 

बस्तर के 85 फीसद खेत सिंचाई सुविधा से वंचित

बस्तर संभाग की कृषि योग्य भूमि का लगभग 85 फीसद हिस्से तक सिंचाई सुविधाएं नहीं पहुंचाई जा सकी हैं। संभाग में सात जिले बस्तर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, कोंडागांव और कांकेर आते हैं। कांकेर को छोड़ दिया जाए तो अन्य जिलों की स्थिति सिंचाई सुविधाओं के मामले में काफी दयनीय है। जल संसाधन विभाग जिसका मूल काम ही सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करना है, मात्र 10 फीसद क्षेत्र को ही सिंचाई कमांड में ला सका है।

 

कृषि, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा किसानों द्वारा स्वयं से विकसित सिंचाई सुविधाओं को सम्मिलित करने पर अधिकतम 15 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता है। प्रदेश में कुल निर्मित सिंचाई क्षमता 21.57 लाख हेक्टेयर में से बस्तर की हिस्सेदारी मात्र 1.29 लाख हेक्टेयर है। आदिवासी बहुल बस्तर की 85 फीसद आबादी कृषि पर निर्भर है। ऐसी स्थिति में सिंचाई सुविधाओं में कमी से खेती-किसानी की कठिनाई का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

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