अडानी भगाओ, जंगल बचाओ” के नारे के साथ कांग्रेस का उग्र प्रदर्शन: गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में चक्का जाम, पुतला दहन

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NV News (Jaswant Jaiswal)गौरेलापेंड्रा-मरवाही, 22 जुलाई 2025: छत्तीसगढ़ में आदिवासी अंचलों की हरियाली पर खतरे की घंटी बज चुकी है। बस्तर, सरगुजा और रायगढ़ जैसे घने जंगलों वाले क्षेत्रों में हो रही कथित अवैध वृक्ष कटाई और जंगलों के कॉरपोरेट दोहन के विरोध में आज कांग्रेस पार्टी ने गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में विशाल और उग्र प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन की गूंज पूरे संभाग में सुनाई दी, जहां “अडानी भगाओ, जंगल बचाओ” का नारा हर गली और चौराहे पर गूंजता रहा।

इस आंदोलन के तहत कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जिला मुख्यालय में चक्का जाम किया और सत्तारूढ़ सरकार का पुतला दहन कर अपना विरोध प्रकट किया। सैकड़ों की संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ता, जनसंगठन, छात्र, महिलाएं और ग्रामीण जन सड़कों पर उतरे। भीड़ इतनी अधिक थी कि कुछ समय के लिए पूरे नगर का यातायात ठप हो गया।

इस जोरदार प्रदर्शन का नेतृत्व कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने किया। इनमें जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष उत्तम वासुदेव, पूर्व विधायक डॉ. के.के. धुर्वे, जिला कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मनोज गुप्ता, जनजाति आयोग की पूर्व सदस्य अर्चना पोर्ते, एनएसयूआई जिला अध्यक्ष अमन शर्मा, ब्लॉक कांग्रेस कमेटी गौरेला के अध्यक्ष अमोल पाठक, और कांग्रेस के जिला प्रवक्ता पवन केशवानी प्रमुख रूप से शामिल थे। इन सभी नेताओं ने अपने संबोधनों में सरकार की वानिकी नीतियों की कड़ी आलोचना करते हुए कॉरपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए जंगलों की बलि चढ़ाने का आरोप लगाया।

 

प्रदर्शनकारियों का कहना था कि मौजूदा भाजपा सरकार जंगलों को कॉरपोरेट कंपनियों के हवाले कर रही है, विशेषकर अडानी समूह के खिलाफ लोगों में गहरा असंतोष है। आदिवासी क्षेत्रों में हरे-भरे जंगलों की अवैध कटाई के कारण न केवल पर्यावरण को भारी क्षति हो रही है, बल्कि पारंपरिक आजीविका और सांस्कृतिक पहचान भी खतरे में पड़ रही है।

डॉ. के.के. धुर्वे ने कहा, “सरकार को समझना चाहिए कि आदिवासी केवल पेड़ों में नहीं रहते, पेड़ ही उनकी जीवनरेखा हैं। जंगल कटे तो आदिवासी बचे नहीं और अगर आदिवासी नहीं बचे, तो छत्तीसगढ़ की आत्मा मर जाएगी। कांग्रेस इसका तीखा विरोध करती है।”

अर्चना पोर्ते ने सरकार पर आदिवासियों के हक पर चोट करने का आरोप लगाया और कहा कि यह केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि अस्तित्व की लड़ाई है। उन्होंने कहा कि “कांग्रेस हर गांव, हर टोला में जाकर इस मुद्दे पर जनजागरूकता फैलाएगी और सरकार के खिलाफ संघर्ष को जनांदोलन का रूप देगी।”

अमन शर्मा और अमोल पाठक ने कहा कि आज का युवा पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर सजग है और सरकार की चालों को पहचान चुका है। उन्होंने कहा कि एनएसयूआई और युवा कांग्रेस आने वाले दिनों में पूरे जिले में अभियान चलाकर युवाओं को इस मुद्दे से जोड़ेगी।

पवन केशवानी ने सरकार पर सीधा हमला करते हुए कहा, “यह सरकार अडानी के इशारे पर काम कर रही है। वह जंगलों को बेच रही है, हमारे अधिकारों को गिरवी रख रही है। कांग्रेस इस तरह की किसी भी नीति का सख्ती से विरोध करेगी।”

प्रदर्शन के दौरान कार्यकर्ताओं ने “जंगल हमारी शान हैं”, “कॉरपोरेट भगाओ, हरियाली बचाओ”, “भूपेश की गारंटी चाहिए – जंगल बचाओ नीति लाइए” जैसे नारों से पूरा इलाका गुंजा दिया। गौरेला, पेंड्रा और मरवाही ब्लॉक के ग्रामीण, किसान, आदिवासी, महिला संगठन और छात्र बड़ी संख्या में प्रदर्शन में पहुंचे।

प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा, हालांकि चक्का जाम के कारण दोपहर तक शहर के कई मार्गों पर यातायात प्रभावित रहा। पुलिस बल मौके पर तैनात रहा और प्रदर्शनकारियों से बातचीत कर यातायात को धीरे-धीरे सामान्य किया गया। पुलिस प्रशासन ने इस बात की पुष्टि की कि प्रदर्शन के दौरान कोई हिंसा या अराजकता नहीं हुई।

कांग्रेस नेताओं ने यह भी चेतावनी दी कि यदि सरकार ने जल्द ही अवैध कटाई पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो पार्टी राज्यभर में चरणबद्ध आंदोलन चलाएगी और जरूरत पड़ी तो विधानसभा का घेराव भी किया जाएगा।

इस आंदोलन की खास बात यह रही कि इसमें सभी वर्गों की भागीदारी रही – किसान, महिलाएं, युवा और वरिष्ठ नागरिकों ने अपनी उपस्थिति से यह साफ संदेश दिया कि पर्यावरण और जंगल बचाने की लड़ाई अब जन आंदोलन बन चुकी है।

यह प्रदर्शन केवल एक दिन की राजनीतिक गतिविधि नहीं, बल्कि आने वाले समय में सरकार की वन नीतियों के खिलाफ एक बड़ी चुनौती का आगाज़ माना जा रहा है। कांग्रेस ने यह साफ कर दिया कि छत्तीसगढ़ की धरती, जंगल, आदिवासी संस्कृति और प्रकृति के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा।

कुल मिलाकर, कांग्रेस का यह प्रदर्शन न केवल स्थानीय प्रशासन बल्कि राज्य सरकार के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि यदि जंगलों की लूट और आदिवासियों के अधिकारों का हनन नहीं रुका, तो जनआक्रोश सड़कों से विधानसभा तक पहुंचेगा और आंदोलन तब तक चलेगा, जब तक सरकार जिम्मेदार कंपनियों पर कार्रवाई नहीं करती और वनों की रक्षा सुनिश्चित नहीं करती।

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