CGMSC Scam:अस्पतालों में इलाज ठप, मरीज बेहाल…NV News

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रायपुर/(CGMSC Scam): छत्तीसगढ़ में सरकारी अस्पतालों को इन दिनों गंभीर दवा संकट का सामना करना पड़ रहा है। वजह है छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विस कॉर्पोरेशन (सीजीएमएससी) से जुड़ा घोटाला, जिसने पूरे स्वास्थ्य तंत्र को झकझोर कर रख दिया है। रीएजेंट घोटाले के बाद से नई दवाओं और उपकरणों की खरीदी के टेंडर 614 दिनों से अटके हुए हैं। इस देरी का असर सीधे अस्पतालों और मरीजों पर पड़ रहा है।
दो साल से टेंडर बंद, 16 निविदाएं लंबित:
सीजीएमएससी द्वारा दवाओं और औषधियों की खरीदी के लिए जारी की गई 16 निविदाएं दो वर्ष से लंबित हैं। इनमें से सबसे पुराना टेंडर 614 दिन और सबसे नया 246 दिन से अटका हुआ है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन निविदाओं की ‘कवर ए’ तक नहीं खोली गई है। इनमें 100 से अधिक दवाएं और उपकरण शामिल हैं, जिनकी जरूरत सरकारी अस्पतालों को रोजाना पड़ती है।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कई बार री-टेंडर करने के बावजूद प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ रही। नतीजतन, अस्पतालों में दवा की आपूर्ति बाधित है और मरीजों को निजी दुकानों का रुख करना पड़ रहा है।
बिना टेंडर के हो रही करोड़ों की खरीदी:
पिछले आठ महीनों में बिना नए टेंडर के करीब 100 करोड़ रुपये की दवाइयों की खरीदी की जा चुकी है। यह खरीदी मुख्य रूप से नाइन एम फार्मा कंपनी से की जा रही हैं,जबकि इसी कंपनी की छह दवाएं गुणवत्ता जांच में फेल हो चुकी हैं। इन दवाओं के प्रोडक्ट क्वालिटी पर सवाल उठ चुके हैं, फिर भी खरीद प्रक्रिया इन्हीं कंपनियों के इर्द-गिर्द घूम रही है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बिना प्रतिस्पर्धा और पारदर्शिता के की जा रही खरीद से सरकारी धन के दुरुपयोग और घटिया दवाओं की आपूर्ति का खतरा बढ़ गया है।
सप्लायर और निर्माता परेशान, भुगतान अटका:
रीएजेंट घोटाले के बाद सीजीएमएससी ने कई सप्लायरों और दवा कंपनियों के भुगतान रोक दिए हैं। कई कंपनियां जिन्होंने दो साल पहले ही दवाओं की सप्लाई पूरी कर ली थी, उनका भुगतान अब तक नहीं हुआ। परिणामस्वरूप, नई सप्लाई बंद कर दी गई है और कंपनियों ने सीजीएमएससी से दूरी बना ली है।
प्रदेश के कई निर्माणाधीन अस्पतालों के कार्य भी इसी कारण रुक गए हैं। ठेकेदारों का कहना है कि भुगतान में देरी से काम ठप पड़ा है और नई बिल्डिंगें समय पर तैयार नहीं हो पा रहीं।
अस्पतालों में संकट, मरीजों को दिक्कत:
सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को औषधियों की आपूर्ति में बाधा आने से मरीजों को दिक्कत झेलनी पड़ रही है। कई जगहों पर स्टॉक खत्म हो चुका है। ग्रामीण इलाकों में सामान्य ज्वर, खांसी, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी आम बीमारियों की दवाएं भी नहीं मिल पा रही हैं।
एक चिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि “हमारे अस्पताल में कई बेसिक दवाएं खत्म हो चुकी हैं। मरीजों को प्राइवेट मेडिकल स्टोर से खरीदने को कहना पड़ रहा है, जबकि सरकारी अस्पतालों में दवाएं मुफ्त मिलने का दावा किया जाता है।”
सरकार ने दिए निर्देश, पर हल नहीं निकला:
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कहा है कि जिन दवाओं और उपकरणों की निविदा लंबित है, उन्हें जल्द पूर्ण करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके साथ ही सरकारी ई-मार्केटप्लेस (GeM पोर्टल) के माध्यम से खरीदी की जा रही है।
हालांकि, विभागीय सूत्रों का कहना है कि जेम पर उपलब्ध सभी दवाएं जरूरी मानकों और श्रेणियों में नहीं आतीं, जिससे पूरी आपूर्ति व्यवस्था सुचारू नहीं हो पा रही है।
पारदर्शिता और तत्परता पर सवाल:
सीजीएमएससी पर लगातार भ्रष्टाचार और पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं। रीएजेंट घोटाले के बाद न केवल खरीदी की प्रक्रिया पर सवाल उठे हैं, बल्कि सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी संदेह गहराया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक दवा खरीदी की प्रक्रिया को पूरी तरह ऑनलाइन, पारदर्शी और समयबद्ध नहीं किया जाता, तब तक ऐसी स्थिति दोबारा उत्पन्न होती रहेगी।
614 दिन से लंबित टेंडर सिर्फ सरकारी कागजों में नहीं अटके हैं,उन्होंने अस्पतालों की अलमारियां खाली कर दी हैं। मरीज दवाओं के लिए भटक रहे हैं और स्वास्थ्य व्यवस्था का भरोसा डगमगा रहा है।