CG Rural Development: 20 साल से अंधेरे में ‘जुगाड़’ गांव, बच्चे दीये की रौशनी में पढ़ने को मजबूर…NV News

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गरियाबंद/(CG Rural Development): छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले का वनांचल ग्राम जुगाड़ आज भी अंधेरे में डूबा हुआ है। आज़ादी के 78 साल और राज्य के गठन के 25 साल बाद भी यहां के लोगों को स्थायी बिजली की सुविधा नसीब नहीं हुई है। वहीं, गांव से कुछ ही दूरी पर स्थित पयलीखड़ थाना 2009 से 24 घंटे बिजली से जगमगा रहा है। यह विरोधाभास दिखाता है कि विकास की रोशनी अब भी राज्य के कई सुदूर गांवों तक नहीं पहुंच पाई है।
20 साल से बिजली का इंतज़ार:
गरियाबंद जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर मैनपुर तहसील के जुगाड़ गांव में 70 मकान और लगभग 750 की आबादी है। ग्रामीण बताते हैं कि, वे पिछले दो दशकों से बिजली की प्रतीक्षा कर रहे हैं। रात में पूरा गांव अंधेरे में डूब जाता है। बच्चे दीया और टॉर्च की कमजोर रोशनी में पढ़ाई करते हैं, जबकि महिलाएं रसोई का काम भी अंधेरे में करती हैं।
मोबाइल चार्ज करने, पानी खींचने या अन्य सामान्य कामों के लिए भी उन्हें काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक गुहार लगाने के बावजूद अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
सौर ऊर्जा योजना भी ठप:
वर्ष 2007 में इस गांव में सौर ऊर्जा के माध्यम से बिजली व्यवस्था शुरू की गई थी, लेकिन यह भी केवल कुछ साल ही चली। पिछले दो वर्षों से सौर पैनल और बैटरी पूरी तरह खराब पड़े हैं। ग्रामीणों का कहना है कि, न तो मरम्मत कराई गई और न ही नई व्यवस्था दी गई।
“संविधान के अधिकारों का उल्लंघन”:
आदिवासी युवा टेकाम नागवंशी कहते हैं, “संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है और अनुच्छेद 21 गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार। बिजली जैसी मूलभूत सुविधा न मिलना इन अधिकारों का खुला उल्लंघन है।”ग्रामीण विवेक अग्रवाल ने कहा कि जुगाड़ गांव के लोग 21वीं सदी में भी 17वीं सदी जैसी जिंदगी जी रहे हैं।
राष्ट्रपति तक पहुंची शिकायत:
लगातार अनदेखी से परेशान ग्रामीणों ने आखिरकार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु तक अपनी शिकायत पहुंचाई है। रायपुर निवासी विवेक अग्रवाल ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर जुगाड़ गांव में जल्द ट्रांसफार्मर और स्थायी बिजली आपूर्ति की मांग की है। उन्होंने बताया कि पड़ोसी गांव उदंती में बिजली सुचारू रूप से चल रही है, लेकिन जुगाड़ गांव अब भी अंधेरे में है।
‘हाथी बनाम सरकार’ का दोहरा संघर्ष:
यह इलाका उदंती-सीतानदी टाइगर रिज़र्व क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जहां हाथियों का आतंक आम बात है। ग्रामीण बताते हैं कि जंगल सिंह नामक ग्रामीण की हाथी के हमले में मौत हो चुकी है। सरपंच सोहन्तीन सोरी कहती हैं, “हम न सिर्फ हाथियों से डरते हैं, बल्कि अंधेरे में जीने की मजबूरी से भी जूझ रहे हैं। हमारा जीवन तो अंधेरे में बीता, अब बच्चों का भविष्य भी अंधेरे में न जाए,यही हमारी मांग है।”
विभाग का जवाब:
ऊर्जा विभाग के सचिव डॉ. रोहित यादव ने कहा, “वन क्षेत्र के गांवों में तकनीकी कठिनाइयों के कारण बिजली पहुंचाने में दिक्कत आती है। ऐसे स्थानों पर सौर ऊर्जा से आपूर्ति की व्यवस्था की जाती है। जुगाड़ गांव की समस्या पर विभाग पुनः समीक्षा करेगा।”
विकास की रोशनी कब?:
जुगाड़ गांव का मामला केवल एक गांव का नहीं, बल्कि उस विडंबना का प्रतीक है जहां एक ओर थाने और कार्यालय 24 घंटे बिजली में जगमगाते हैं, वहीं कुछ ही किलोमीटर दूर बच्चे दीये की लौ में सपनों को साकार करने की कोशिश करते हैं।
ग्रामीणों को अब भी उम्मीद है कि,कभी न कभी उनके गांव में भी वह दिन आएगा, जब वे भी “रोशनी” के साथ जी सकेंगे। न केवल बिजली की, बल्कि विकास की भी।