“CG Research”: PRSU ने बनाई पोर्टेबल किट, सिकलसेल टेस्ट सिर्फ 20 रुपये में…NV News 

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Raipur (CG): स्वास्थ्य जगत के लिए एक बड़ी राहत की खबर आई है। पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय (PRSU), रायपुर के शोधकर्ता अरुण पटेल ने सिकलसेल एनीमिया (Sickle cell anemia) की जांच के लिए एक किफायती और पोर्टेबल किट (portable kit) विकसित की है। खास बात यह है कि इस किट से जांच की लागत मात्र 20 रुपये होगी। ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में जहां महंगे और जटिल टेस्ट उपलब्ध नहीं हो पाते, वहां यह तकनीक(technique)बेहद उपयोगी साबित हो सकती है।

क्यों है यह खोज खास?:

वर्तमान समय में सिकलसेल एनीमिया (Sickle cell anemia)की पुष्टि करने के लिए इलेक्ट्रोफोरेसिस और एचपीएलसी (Electrophoresis & HPLC) जैसी विधियां उपयोग में लाई जाती हैं। ये जांचें काफी सटीक हैं लेकिन महंगी, समय लेने वाली और उन्नत प्रयोगशालाओं के साथ प्रशिक्षित स्टाफ की मांग करती हैं। यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों में अक्सर मरीजों को सही समय पर जांच ही नहीं मिल पाती। नई पोर्टेबल किट (new portable kit)इस समस्या को दूर कर सकती है।

कैसे काम करेगी यह किट?:

यह किट माइक्रोफ्लुइडिक पोर्टेबल डिवाइस (Microfluidic portable Device ) पर आधारित है। जांच प्रक्रिया बेहद सरल है-

• रक्त की केवल एक बूंद ली जाती है।

• इसे माइक्रोफ्लुइडिक चैनल(Microfluidic channel) में डाला जाता है।

• इसमें सोडियम मेटाबाइसल्फाइट (2%)(sodium metabisulfide 2%) और पीबीएस (PBS) मिलाया जाता है।

• सामान्य लाल रक्त कोशिकाएं (RBCs) अपने गोल और द्वि-अवतल आकार के कारण आसानी से चैनल से गुजर जाती हैं।

• लेकिन सिकलसेल मरीज (sickel cell) की हंसिए के आकार की कठोर कोशिकाएं चैनल में फंस जाती हैं और प्रवाह रोक देती हैं।इस अवरोध को ऑप्टिकल इमेजिंग (CMOS कैमरा) से रिकॉर्ड किया जाता है।

प्रवाह में रुकावट दिखाई देने पर यह सिकलसेल पॉजिटिव (Sickel cell Positive) माना जाता है। इस तकनीक (technique)से जांच तेज, सस्ती और पोर्टेबल होगी, जिसे कहीं भी आसानी से उपयोग किया जा सकेगा।

सिकलसेल एनीमिया (Sickel cell anemia)क्या है?:

सिकलसेल एनीमिया (Sickel cell anemia) एक आनुवंशिक रक्त संबंधी रोग है। इसमें हीमोग्लोबिन(Haemoglobin) का ढांचा असामान्य हो जाता है, जिससे लाल रक्त कोशिकाएं गोल की जगह हंसिए (सिकल) के आकार (Sickle-shaped Red Blood Cells)की हो जाती हैं। ये कठोर कोशिकाएं खून की नलियों में फंस जाती हैं, जिससे-

• खून का प्रवाह रुक जाता है

• शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है

• मरीज को तेज दर्द, अंगों को नुकसान और स्ट्रोक (stroke)जैसी गंभीर दिक्कतें हो सकती हैं

• समय से इलाज न होने पर मृत्यु(death’) का खतरा भी रहता है

शोध का नेतृत्व और महत्व:

यह शोध प्रो. कमलेश श्रीवास के नेतृत्व में चल रहा है। टीम का मानना है कि यह तकनीक(technique) ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं को नई दिशा देगी। वर्तमान में जहां जांच महंगी और सीमित है, वहीं यह किट न केवल सस्ती होगी बल्कि पोर्टेबल और आसान उपयोग वाली भी होगी।

समाज के लिए संभावित बदलाव:

छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में सिकलसेल एनीमिया गंभीर समस्या sickel cell anemia problem)है। हजारों लोग हर साल इस बीमारी से पीड़ित होते हैं। यदि यह किट बड़े पैमाने पर उपलब्ध हो जाती है तो—

• ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों पर तुरंत जांच संभव होगी

• समय पर निदान होने से इलाज जल्दी शुरू किया जा सकेगा

• मरीजों और उनके परिवारों का आर्थिक बोझ काफी हद तक कम होगा

• स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव भी घटेगा।

फिलहाल यह किट प्रोटोटाइप स्टेज (Prototype stage)में है। आगे इसे क्लिनिकल ट्रायल्स(clinical trials) और बड़े पैमाने पर टेस्टिंग (testing)की आवश्यकता होगी। लेकिन अगर यह सफल होती है, तो भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए एक गेम-चेंजर तकनीक (technique)साबित हो सकती है।

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