CG High Court: गलत घुटने का ऑपरेशन! हाईकोर्ट ने कहा, “जांच दोबारा करो”…NV News
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बिलासपुर/(CG High Court): छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक गरीब महिला के साथ हुई गंभीर चिकित्सीय लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताते हुए पूरे मामले की नए सिरे से जांच कराने का आदेश दिया है। मामला ईएसआईसी योजना के तहत इलाज करा रही शोभा शर्मा से जुड़ा है, जिनके साथ डॉक्टरों ने ऐसा चौंकाने वाला गलती भरा व्यवहार किया कि,अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा। आरोप है कि,जिनका इलाज बाएं घुटने के लिए होना था, उनका ऑपरेशन गलती से दाएं घुटने का कर दिया गया। जब महिला और परिवार ने आपत्ति जताई तो बिना पूरी तैयारी और जरूरी जांच के, जल्दबाजी में बाएं घुटने का भी ऑपरेशन कर दिया गया।
शोभा शर्मा का इलाज पहले बिलासपुर के लालचंदानी अस्पताल में चल रहा था, जहां से उन्हें ऑपरेशन के लिए आरबी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस भेजा गया। परिवार को उम्मीद थी कि,उन्हें उचित उपचार मिलेगा, लेकिन इसके बजाय डॉक्टरों की लापरवाही ने उनकी जिंदगी ही बदल दी।
दोनों ऑपरेशनों के बावजूद उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ, बल्कि स्थिति और खराब होती चली गई। पीड़िता चलने-फिरने में असमर्थ हो गईं और रोजमर्रा के काम करना भी उनके लिए चुनौती बन गया। आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण वे अपनी समस्या का समाधान नहीं कर पा रही थीं। ऐसे में प्रो बोनो कानूनी सहायता मिलने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
इस मामले की शिकायत के बाद प्रशासन ने चार सदस्यीय जांच समिति गठित की थी। लेकिन इस समिति ने दोनों अस्पतालों को किसी भी तरह की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया। समिति की रिपोर्ट पाने के बाद अदालत ने इसकी प्रक्रिया पर सवाल उठाए। न्यायालय ने पाया कि,समिति न तो नियमों के अनुसार गठित की गई थी और न ही उसकी अध्यक्षता उस स्तर के अधिकारी ने की, जैसा कि नियम 18 में अनिवार्य है। समिति की संरचना और उसकी कार्यप्रणाली, दोनों ही नियमों के विरुद्ध थीं।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि, इस तरह की गंभीर चिकित्सीय गड़बड़ी के मामले में खानापूरी नहीं की जा सकती। मरीज के अधिकारों और सुरक्षा को लेकर लापरवाही किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। इसलिए अदालत ने पुरानी जांच रिपोर्ट को खारिज करते हुए जिला कलेक्टर को आदेश दिया कि, वह नियमों का पालन करते हुए एक नई उच्चस्तरीय जांच समिति बनाए। साथ ही, इस समिति को चार माह की समय सीमा के भीतर पूरी जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
पीड़िता ने अदालत को बताया कि,चिकित्सीय लापरवाही ने उनकी जिंदगी को गहरा असर पहुंचाया है। न सिर्फ वे शारीरिक रूप से कमजोर हो गई हैं, बल्कि इलाज पर लगे खर्च और असमर्थता के कारण आर्थिक बोझ भी बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि,यदि मुफ्त कानूनी सहायता न मिलती, तो न्याय की लड़ाई लड़ना उनके लिए संभव नहीं था।
अदालत के इस आदेश से न सिर्फ पीड़िता को न्याय की उम्मीद जगी है, बल्कि यह मामला स्वास्थ्य सेवाओं में जवाबदेही और पारदर्शिता की भी मांग करता है। यह आदेश संदेश देता है कि,चिकित्सा क्षेत्र में की गई गंभीर त्रुटियों को न तो अनदेखा किया जा सकता है और न ही औपचारिक जांच में छुपाया जा सकता है।
हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से अब उम्मीद है कि,मामले की निष्पक्ष जांच होगी और लापरवाही के लिए जिम्मेदार लोगों पर उचित कार्रवाई की जाएगी।
