CG High Court: शिक्षकों की क्रमोन्नति याचिकाएं खारिज,सरकार की नीति को मिली मान्यता…NV News
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बिलासपुर/(CG High Court): छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने शिक्षकों की क्रमोन्नति और पदोन्नति से जुड़े लंबे समय से चले आ रहे मामलों में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। वर्ष 2016–17 से लंबित इन मामलों में कोर्ट ने सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है और राहत देने से साफ इनकार कर दिया है। जस्टिस एनके व्यास की सिंगल बेंच में हुई सुनवाई में हाई कोर्ट ने राज्य शासन की नीति और नियमों को मान्यता देते हुए याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया।
HC ने सभी याचिकाएं खारिज की:
शिक्षक रामनिवास साहू ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसमें उन्होंने अपनी क्रमोन्नति और 2016–17 से लंबित पदोन्नति की मांग की थी। रामनिवास साहू चर्चित शिक्षक सोना साहू के पति हैं और उन्होंने अपनी याचिका में सोना साहू के मामले को मिसाल के तौर पर पेश किया। याचिकाकर्ता ने खुद कोर्ट में उपस्थित होकर दलीलें पेश कीं।
हालांकि, राज्य शासन की ओर से पैरवी कर रहे वकीलों ने कहा कि, 2017 में जारी सर्कुलर केवल नियमित शासकीय शिक्षकों के लिए था। रामनिवास साहू वर्ष 2018 में संविलियन के बाद शासकीय सेवा में शामिल हुए हैं, इसलिए उनकी सेवा अवधि की गणना भी उसी वर्ष से होगी, न कि पंचायत सेवा के आरंभिक वर्ष से।
हाई कोर्ट ने राज्य शासन के तर्कों को स्वीकार करते हुए कहा कि, सोना साहू के मामले की परिस्थितियां वर्तमान याचिकाओं से पूरी तरह भिन्न हैं। इसलिए उसे इन मामलों में मिसाल के रूप में लागू नहीं किया जा सकता।
नियम और परिपत्रों का हवाला:
राज्य शासन ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ निर्णयों का हवाला देते हुए यह भी कहा कि, “रूल ऑफ ला” के अनुसार पूर्ववर्ती सेवाओं की गणना केवल तभी की जा सकती है जब संविलियन से पूर्व की सेवाएं नियमित या शासकीय स्वरूप में रही हों। इसके साथ ही शासन ने 6 नवंबर 2025 को जारी नवीन परिपत्र का जिक्र किया, जिसमें क्रमोन्नति और पदोन्नति के आधार को स्पष्ट किया गया है।
हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा था। आज सुनवाई के बाद जस्टिस एनके व्यास की सिंगल बेंच ने सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट के इस फैसले के बाद शिक्षकों के लंबे समय से चले आ रहे क्रमोन्नति विवाद पर फिलहाल विराम लग गया है।
याचिकाकर्ता और सरकार की स्थिति:
रामनिवास साहू ने कोर्ट में अपनी लंबित पदोन्नति और क्रमोन्नति को लेकर यह दलील दी थी कि, सोना साहू के मामले में इसी तरह की सेवाओं को मान्यता दी गई थी, इसलिए उनके मामले में भी समान न्याय होना चाहिए।
वहीं, राज्य शासन ने स्पष्ट कहा कि, नियम और परिपत्रों के अनुसार उनके मामले में कोई समानता नहीं है। शासन के अनुसार, संविलियन से पहले की सेवाओं का श्रेणीकरण महत्वपूर्ण है और केवल नियमित शासकीय सेवाओं को ही क्रमोन्नति की गणना में शामिल किया जा सकता है।
हाई कोर्ट के फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि, 2016–17 से लंबित पदोन्नति और क्रमोन्नति को याचिकाकर्ताओं को नहीं दी जाएगी। राज्य सरकार ने भी अपने तर्क में यह दोहराया कि, सोना साहू का मामला विशेष परिस्थितियों वाला था और उसे सामान्य उदाहरण के रूप में नहीं लिया जा सकता।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने शिक्षकों की लंबित पदोन्नति और क्रमोन्नति के मामलों में राज्य शासन के पक्ष को मान्यता दी है। कोर्ट के इस निर्णय के अनुसार, संविलियन से पहले की सेवाओं की गणना केवल नियमित या शासकीय सेवाओं पर आधारित होगी। इससे पहले लंबे समय से यह विवाद था कि, कौन से शिक्षक किस आधार पर क्रमोन्नति के हकदार हैं।
रामनिवास साहू सहित अन्य याचिकाकर्ताओं के प्रयासों के बावजूद कोर्ट ने नियम और परिपत्रों के आधार पर उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया। राज्य सरकार ने इस मामले में अपने तर्क और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए स्पष्ट कहा कि, वर्तमान मामलों में राहत देना उचित नहीं है।
इस फैसले के बाद छत्तीसगढ़ के शिक्षकों के क्रमोन्नति और पदोन्नति विवाद पर फिलहाल अंतिम निर्णय आ गया है, और याचिकाकर्ताओं को न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली।
