CG High Court: गर्भवती पत्नी ने पति संग रहने से किया इनकार, हाई कोर्ट का फैसला…NV News 

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बिलासपुर/(CG High Court): छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में बुधवार को एक अनोखा मामला सामने आया, जिसने सभी को चौंका दिया। बहतराई निवासी 30 वर्षीय पीएससी (CGPSC) अभ्यर्थी युवक ने अपनी गर्भवती पत्नी की “रिहाई” के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। पति का आरोप था कि उसकी पत्नी, जो स्वयं भी पीएससी की तैयारी कर रही है और तीन माह की गर्भवती है, को उसके माता-पिता जबरन अपने साथ ले गए हैं। उसने यह भी आशंका जताई कि पत्नी पर दबाव डालकर उसका जबरन गर्भपात कराया जा सकता है।

प्रेम विवाह से शुरू हुआ विवाद:

याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि वह और उसकी पत्नी लंबे समय से बिलासपुर में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे। इसी दौरान दोनों के बीच प्रेम संबंध बने और 28 अगस्त 2025 को दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया। शादी के बाद पत्नी बहतराई स्थित घर में पति और उसके परिवार के साथ रहने लगी।हालांकि, यह विवाह अलग जाति में होने के कारण पत्नी का परिवार नाराज था और रिश्तों में तनाव बढ़ता गया।

7 सितंबर को अचानक हुई घटना:

पति के अनुसार, 7 सितंबर की सुबह लगभग 9 बजे पत्नी के घर उसके स्वजन सफेद एर्टिगा कार में पहुंचे। वे मिलने के बहाने घर में आए और अचानक पत्नी को जबरन अपने साथ ले गए। इसके बाद से पत्नी का मोबाइल फोन स्विच ऑफ हो गया और उससे कोई संपर्क नहीं हो सका।पति का कहना है कि उसने तुरंत थाने में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।

पत्नी ने कोर्ट में रखी अपनी बात:

बुधवार को चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बी.डी. गुरु की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई। सरकारी वकील ने पत्नी का शपथपत्र पेश किया, जिसमें उसने साफ लिखा था कि वह अपनी मर्जी से माता-पिता के साथ रह रही है और पति के घर लौटना नहीं चाहती।अदालत में पेश होकर पत्नी ने भी यही मौखिक बयान दोहराया। उसने साफ कहा कि वह पति के साथ नहीं रहना चाहती और अपने माता-पिता के संरक्षण में सुरक्षित महसूस कर रही है।

पति का दावा- पत्नी पर डाला गया दबाव:

पति ने अदालत में दलील दी कि पत्नी का बयान पूरी तरह दबाव में दिलवाया गया है। उसने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी और उसके गर्भस्थ शिशु की जान को गंभीर खतरा है। इस आधार पर उसने अदालत से अपनी पत्नी को उसके पास भेजने की मांग की।

अदालत का फैसला:

अदालत ने सभी तथ्यों को सुनने के बाद कहा कि बालिग महिला अपनी इच्छा से जहां चाहे रह सकती है। पति के आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया। ऐसे में पत्नी की स्वतंत्र इच्छा को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने पति की याचिका खारिज कर दी।

यह मामला उन जटिल परिस्थितियों को दर्शाता है, जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पारिवारिक विवाद आमने-सामने आ जाते हैं। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि किसी भी बालिग महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध कहीं भी रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इस फैसले के साथ ही याचिका को निरस्त कर दिया गया, जबकि पति को अन्य कानूनी उपायों के लिए स्वतंत्र छोड़ा गया।

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