CG Diwali Festival: देवता के आदेश से बनी अनोखी परंपरा, इस गांव में त्योहार मनाए जाते हैं सात दिन पहले…NV News

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धमतरी/(CG Dipawali Festival): धमतरी जिले से करीब 22 किलोमीटर दूर बसे छोटे सेमरा गांव की एक अनोखी परंपरा उसे पूरे इलाके में अलग पहचान दिलाती है। जहां देशभर में दीपावली इस साल 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी, वहीं सेमरा गांव ने इस त्योहार को मंगलवार को ही पूरे उल्लास के साथ मना लिया। न केवल दीवाली, बल्कि हर त्योहार यहां तय तारीख से सात दिन पहले ही मनाया जाता है।

गांव के बुजुर्गों के अनुसार, यह परंपरा सदियों पुरानी है। माना जाता है कि गांव के देवता सिदार बाबा ने एक सपने में ग्रामीणों को आदेश दिया था कि किसी भी पर्व को मनाने से पहले उन्हें हूम-धूप अर्पित करना अनिवार्य है। तब से लेकर आज तक गांव वाले हर त्योहार की शुरुआत सिदार बाबा की पूजा से करते हैं और निर्धारित तिथि से एक सप्ताह पहले ही त्योहार मना लेते हैं। ग्रामीणों का विश्वास है कि इस परंपरा को तोड़ना अशुभ साबित हो सकता है, इसलिए पीढ़ी दर पीढ़ी इसे निभाया जा रहा है।

हफ्ता पहले मनाई दीवाली, पूरे गांव में छाया उल्लास:

मंगलवार को सुबह से ही गांव में दीवाली की रौनक दिखाई देने लगी। घरों की सफाई, रंगोली, दीप सजावट और मिठाइयों की खुशबू से गलियां महक उठीं। शाम ढलते ही पूरा सेमरा गांव दीपों की रोशनी से जगमगा उठा। मंदिरों में पूजा-पाठ हुई और लोगों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर शुभकामनाएं दीं। आतिशबाजी और पटाखों ने माहौल को और रंगीन बना दिया।

गांव की महिलाएं परंपरागत वेशभूषा में सजीं, बच्चों ने पटाखे जलाए और बुजुर्गों ने आंगनों में मिट्टी के दीए जलाकर परिवार की खुशहाली की कामना की। कई घरों में बाहर से आए मेहमानों का स्वागत किया गया। ग्रामीणों के लिए यह सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि गांव की आस्था और एकजुटता का प्रतीक है।

आस्था और परंपरा का संगम:

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह परंपरा सिर्फ धार्मिक मान्यता नहीं बल्कि सिदार बाबा के प्रति सम्मान का प्रतीक है। वे कहते हैं कि जब भी गांव में कोई नया पर्व आता है, पहले बाबा के मंदिर में धूप-दीप चढ़ाया जाता है, फिर गांववाले अपने-अपने घरों में त्योहार मनाते हैं। ऐसा करने से “देवता पहले प्रसन्न होते हैं”- यही गांव की आस्था है।

परंपरा ने दी गांव को नई पहचान:

आज सेमरा गांव अपनी इस विशेष परंपरा के कारण दूर-दराज़ तक प्रसिद्ध है। आसपास के गांवों से लोग यहां त्योहारों के दौरान आते हैं ताकि इस अनोखी परंपरा का अनुभव कर सकें। हर वर्ष त्योहारों से पहले ही गांव का माहौल उत्सव में बदल जाता है। दुकानों में रौनक बढ़ जाती है, बच्चे झूम उठते हैं और घरों में चहल-पहल छा जाती है।

गांव के युवाओं का कहना है कि यह परंपरा न केवल आस्था से जुड़ी है, बल्कि रिश्तों को भी जोड़ने का माध्यम बन गई है। “जब हम त्योहार एक हफ्ता पहले मनाते हैं, तो परिवार के सभी सदस्य इकट्ठा हो पाते हैं। कई रिश्तेदार जो दूसरे शहरों में रहते हैं, वे भी पहले आकर शामिल हो जाते हैं,”- ऐसा कहना है गांव के युवा नरेश साहू का।

नई पीढ़ी भी निभा रही विरासत:

जहां आधुनिकता के दौर में कई परंपराएं पीछे छूटती जा रही हैं, वहीं सेमरा गांव की नई पीढ़ी इसे गर्व और उत्साह से निभा रही है। युवाओं का मानना है कि यह परंपरा गांव की पहचान है और इसे बनाए रखना उनका कर्तव्य है। वे सोशल मीडिया पर भी अपने गांव की इस विशेषता को साझा करते हैं, जिससे सेमरा की ख्याति अब दूर तक फैलने लगी है।

संस्कृति और लोकजीवन की झलक:

सेमरा गांव की यह परंपरा सिर्फ एक धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की जीवंत संस्कृति और लोकजीवन की सुंदर झलक पेश करती है। समय के साथ भले ही बहुत कुछ बदला हो, पर सिदार बाबा के आदेश और गांव की यह अनोखी परंपरा आज भी उसी श्रद्धा और उत्साह से निभाई जा रही है।

हर दीवाली, दशहरा या होली सेमरा गांव में उत्सव की शुरुआत पहले होती है, और यही “पहले त्योहार मनाने वाला गांव” अब लोगों के दिलों में अपनी चमकदार पहचान बना चुका है।

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