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N.V.News नई दिल्ली/ रायपुर: नई दिल्ली स्थित संसद भवन में नगीना लोकसभा सांसद चंद्रशेखर आजाद ने छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार कांड में भाजपा शासित राज्य सरकार की दमनात्मक कार्रवाई के विरोध में तख्ती लेकर प्रदर्शन किया। सतनामी समाज पर हो रही कथित उत्पीड़न की घटनाओं को लेकर उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की और इसे वंचित वर्गों के अधिकारों पर हमला बताया।
सांसद चंद्रशेखर ने छत्तीसगढ़ के आरक्षित वर्ग के जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने आरोप लगाया कि ये जनप्रतिनिधि अपने कर्तव्यों से विमुख होकर केवल परिवार और संपत्ति बढ़ाने में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि राजनीतिक आरक्षण का मूल उद्देश्य वंचित समाज के अधिकारों और विकास के लिए काम करना है, न कि सत्ता और संपत्ति का साधन बनना।
जनता से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि प्रतिनिधि चुनते समय ऐसे नेताओं का चयन करें जो अपने समुदाय और समाज के व्यापक हित के लिए कार्य करें। बलौदाबाजार कांड में सरकार की कार्रवाई पर उनका प्रदर्शन इस बात को स्पष्ट करता है कि सत्ता में बैठे लोग यदि जनहित की बजाय निजी हितों को प्राथमिकता देंगे, तो समाज में असमानता बढ़ेगी।
चंद्रशेखर आजाद के इस प्रदर्शन ने छत्तीसगढ़ के आरक्षित वर्ग की राजनीति और उनके नेतृत्व पर एक गंभीर बहस छेड़ दी है। जरूरत है कि नेता अपनी जिम्मेदारियों को समझें और समाज में समतामूलक व्यवस्था की स्थापना के लिए कार्य करें।
क्या है बलौदाबाजार कांड:
छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के महकोनी गांव में 15-16 मई की रात सतनामी समाज के आस्था का केंद्र जैतखंभ काटे जाने की घटना के बाद सतनामी समाज में आक्रोश फैल गया। पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया, लेकिन समाज की घटना की सीबीआई जांच की मांग के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
10 जून को बलौदाबाजार के दशहरा मैदान में CBI या मजिस्ट्रेट जांच की मांग लेकर आयोजित सभा के बाद आक्रोशित भीड़ ने एसपी और कलेक्ट्रेट कार्यालय में आग लगा दी, जिसमें सैकड़ों गाड़ियां जल गईं और लगभग 12 करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए 185 लोगों को गिरफ्तार किया।
आरोप है कि पुलिस के पास अधिकांश गिरफ्तारियों का कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। जेल में बंद लोगों में से कई निर्दोष होने की आशंका जताई जा रही है।
अब तक एसआईटी का गठन न होना और प्रगतिशील सतनामी संगठन के प्रमुख पदाधिकारियों सहित कई निर्दोषों का जेल में बंद रहना, बीजेपी सरकार की मंशा और न्याय प्रक्रिया पर सवाल खड़े करता है। बेकसूरों को राहत दिलाने के लिए व्यापक और निष्पक्ष जांच की मांग की जा रही है।