Breaking News: SC/ST लिस्ट में उप वर्गीकरण, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से SC/ ST समुदाय में भारी नाराजगी- NV News

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N.V.News नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को लेकर गुरुवार (1 अगस्त) को बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने 6:1 के बहुमत से कहा कि एससी/एसटी कैटेगरी के भीतर ज्यादा पिछड़ों के लिए अलग कोटा दिया जा सकता है जिसे SC/ST समुदाय ने अन्यायपूर्ण व पक्षपाती बताया है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना है कि एससी/एसटी आरक्षण के तहत जातियों को अलग से हिस्सा दिया जा सकता है. सात जजों की बेंच ने बहुमत से यह फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद समुदाय ने इस फैसले को SC-ST के आरक्षण में उप-वर्गीकरण का मतलब है SC-ST को आपस में बांटना ताकि वंचित जातियां अपने हक-अधिकार के लिए एकजुट होकर कभी संघर्ष ना कर पाएं। आज का सुप्रीम कोर्ट का फैसला फूट डालो और राज करो की नीति जैसा प्रतीत होता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देश के SC/ST नेताओं की प्रतिक्रिया दी। सोशल मीडिया में कोर्ट के इस फैसले के बाद SC/ST समुदाय में भारी नाराजगी देखी गई है। इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर रहे है। बसपा सुप्रीमों बहन मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अपनी नाराजगी जाहिर की है।

लोक जनशक्ति पार्टी ने मामले में अपना रुख साफ़ करते हुए ब्यान जारी किया जिसमे लिखा कि, ” SC-ST श्रेणियों को सब- कैटेगरी में रिजर्वेशन वाले मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) पक्षधर नहीं है। पार्टी के संस्थापक पद्म भूषण श्रद्धेय रामविलास पासवान जी भी इस बात की मांग करते आएं की जब तक समाज में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ छुआछूत जैसी प्रथा है तब तक SC-ST श्रेणियों को सब-कैटेगरी में आरक्षण और कृमिलेयर जैसे प्रावधान न हो।

भीम आर्मी चीफ व नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि हम जज बन जाए, IAS बन जाए या किसी और बड़े पद पर पहुंच जाएं लेकिन हमें बोला दलित ही जाता है, हमें दलित पहचान के साथ ही रहना पड़ता है।

ट्राइबल आर्मी के संस्थापक हंसराज मीणा ने कहा- ” सुप्रीम कोर्ट का एससी-एसटी वर्गों में उपवर्गीकरण का फैसला समाज में “फूट डालो, राज करो” मनुवादी पूर्वाग्रह से प्रेरित है। हम इस फैसले का विरोध करते हैं। मोदी सरकार को लगता है कि वह एससी एसटी में उप वर्गीकरण करके समाज में फूट डालकर उनकी हकमारी कर सकती है तो ये उसकी गलतफहमी हैं। 2, अप्रैल 2018 का एससी एसटी एक्ट बचाओ आंदोलन याद तो होगा? शाम 5 बजे सरकार ने घुटने टेक दिए थे। बहुजनो के भोलेपन को उनकी कमजोरी ना समझें, सरकार ने अगर इस दिशा में कोई कदम उठाया तो 2018 से भी बड़ा आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहें।”

अखिल भारतीय दलित लेखिका मंच की सदस्य और जेएमआई प्रोफेसर हेमलता महिश्वर ने कहा, “हिंदू वर्ण व्यवस्था के तहत डॉ. अम्बेडकर ने विभिन्न उपजातियों को एक श्रेणी में रखा था, और हम संवैधानिक आधार पर एकता की ओर बढ़ रहे हैं। लगता है कि सरकार हमारी एकता से खुश नहीं है, इसलिए माननीय सुप्रीम कोर्ट ने फिर से ‘विभाजन और शासन’ की नीति अपनाई है।”

दिल्ली विश्वविद्यालय में असोसिएट प्रोफ़ेसर रतनलाल ने द्वीट किया- ” SC,ST आरक्षण में बंटवारा हो सकता है. सुदामा कोटा ‘ईश्वरीय’ है, उसमें बंटवारा नहीं हो सकता. गैर-संवैधानिक फैसला।”

SC/ST में सब क्लासिफिकेशन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सोशल मीडिया में एससी एसटी नेताओं, सोशल एक्टिविस्ट ने काफी नाराजगी जाहिर की है। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक फैसला कैसे दे सकती है। संविधान का अनुच्छेद 341 अनुसूचित जातियों (SC) की सूचियों और अनुच्छेद 342 अनुसूचित जनजातियों (ST) की सूचियों से संबंधित है। इन सूचियों को राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया जाता है और संसद की अनुमति के बिना इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सोशल एक्टिविस्टों ने एससी/एसटी समाज में “फूट डालो और राज करो” कहा है। SC/ST में आरक्षण का मूल आधार सामाजिक छुआछूत है कोर्ट ने इस फैसले से एससी/एसटी के परिभाषा को बदलने का प्रयास बताया है।

 

 

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