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N.V.News नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को लेकर गुरुवार (1 अगस्त) को बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने 6:1 के बहुमत से कहा कि एससी/एसटी कैटेगरी के भीतर ज्यादा पिछड़ों के लिए अलग कोटा दिया जा सकता है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना है कि एससी/एसटी आरक्षण के तहत जातियों को अलग से हिस्सा दिया जा सकता है. सात जजों की बेंच ने बहुमत से यह फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया है।
CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि SC कैटेगरी के भीतर ज्यादा पिछड़े लोगों के लिए अलग से कोटा देने के लिए इनका सब-क्लासिफिकेशन स्वीकार है।
कोर्ट ने 8 फरवरी को पिछली सुनवाई में कहा था कि राज्य सिलेक्टिव हुए तो तुष्टिकरण तुष्टिकरण बढ़ेगा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट SC-ST में कोटा को लेकर दिए गए 2004 के अपने ही फैसले की समीक्षा कर रही थी।
इस दौरान जस्टिस चिन्नैया ने कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जाति (SCs) और अनुसूचित जनजाति (STs) में कोटा के लिए सब-कैटेगरी बनाने का अधिकार नहीं है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में ऐतिहासिक साक्ष्यों का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियां एक सजातीय वर्ग नहीं हैं. उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है. साथ ही उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन नहीं करता है. अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो।
पूरा मामला क्या है:
दरअसल, पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों में से 50 फीसद ‘वाल्मिकी’ एवं ‘मजहबी सिख’ को देने का प्रविधान किया था. 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आधार बनाते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी।
इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. 2020 में SC की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि वंचित तक लाभ पहुंचाने के लिए यह जरूरी है. मामला दो पीठों के अलग-अलग फैसलों के बाद 7 जजों की पीठ को भेजा गया था।