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N.V.News नई दिल्ली: दिल देके देखो’, ‘कटी पतंग’, ‘तीसरी मंजिल’ और ‘कारवां’ जैसी फिल्मों के लिए मशहूर 79 वर्षीय अभिनेत्री आशा पारेख को हिंदी सिनेमा में सबसे प्रभावशाली अभिनेत्रियों में शुमार किया जाता है। आशा पारेख को इस साल दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से किया जायेगा सम्मानित जायेगा।
पारेख ने 1990 के दशक के अंत में एक निर्देशक एवं निर्माता के तौर पर टीवी नाटक ‘कोरा कागज’ का निर्देशन किया था, जिसे काफी सराहा गया था।
उन्होंने हिंदी के अलावा पंजाबी, गुजराती और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया। अभिनेत्री ने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी भी लॉन्च की थी और टीवी शोज भी बनाए। उन्हें साल 1992 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।
अनुराग ठाकुर ने आशा की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने 95 से ज्यादा फिल्मों में काम किया और 1998 से 2001 तक केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) की अध्यक्ष रहीं। पिछले साल, 2019 के लिए रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
आशा पारेख का शुरूआती जीवन:
वे एक साधारण से मध्यम वर्गीय गुजराती जैन परिवार में जन्मी थी. बचपन में कभी वो डॉक्टर तो कभी आई एस अधिकारी बनने के बारे में सोचती थी. बहुत छोटी सी उम्र से ही उनकी माता जी ने उन्हें डांस सिखाने के लिए विभिन्न डांस इंस्टिट्यूट में उनका दाखिला कराती रहती थी. वे उन्हें एक अच्छी डांसर बनते देखना चाहती थी. बहुत से डांस के शिक्षकों ने उन्हें डांस की तालीम दी, जिनमे से एक डांस के शिक्षक पंडित बंसीलाल भारती का भी नाम है जो बहुत ही उच्च कोटि के डांस शिक्षक थे. इस वजह से आशा जी एक बहुत ही मजी हुई शास्त्रीय नृत्यांगना बन गई, और उन्होंने कई बड़े डांस शो भी किये है. वे विदेशों में भी अपना नृत्य शो करने जाती थी।
आशा पारेख का व्यक्तिगत जीवन:
आशा पारेख जी अब भी बहुत सक्रीय है. वह एक डांस एकेडमी भी चलाती है जिसका नाम है कारा भवन. आशा पारेख बहुत ही खुश मिजाज और जिंदादिल इंसान है. वे बहुत ही उदार प्रवृति की है, वे बहुत सारे सामाजिक कार्यों से भी जुडी हुई है. इस वजह से उनके नाम पर मुम्बई में एक अस्पताल का नाम दिया गया है द आशा पारेख हॉस्पिटल. आशा पारेख जी भारतीय सिने आर्टिस्ट एसोसिएशन की अध्यक्ष भी रह चुकी है, इसके साथ ही उन्होंने 1994 से लेकर 2000 तक भारतीय फ़िल्म सेंसर बोर्ड की महिला अध्यक्ष के पद भार को भी संभाली. जो कि इतिहास बन गया क्योंकि इससे पहले किसी भी महिला को यह पद प्राप्त नहीं हुआ था. वह पहली ऐसी महिला बनी जो भारतीय सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष बनी।