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NV News:- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने करीब एक महीने पहले टेलीविजन पर आकर यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का ऐलान किया।
साथ ही उन्होंने पश्चिमी सहित अन्य देशों को भी आगाह किया कि अगर रूस-यूक्रेन के बीच कोई आता है तो उसे भी गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इसके बाद से एक जंग जारी है और फिलहाल इसके खत्म होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। अमेरिका सहित कई देशों ने रूसी हमले का विरोध किया लेकिन किसी भी देश ने सीधे तौर पर खुद को युद्ध में नहीं झोंकने का फैसला लिया।
रूस-यूक्रेन जंग का दुनिया पर दिख रहा असर
पिछले चार हफ्तों में रूसी सेना ने यूक्रेन पर कई हवाई हमले किए हैं, उसके शहरों की घेराबंदी की है और यूरोप पिछले कई दशकों में पहला भीषण शरणार्थी संकट देख रहा है। इस संघर्ष ने भू-राजनीतिक परिदृश्य को फिर से नया आकार देना शुरू किया है। ये भी है कि इस जंग ने मॉस्को और शीत युद्ध के पश्चिमी विरोधी देशों के बीच विभाजन को और चौड़ा कर किया है। वैश्विक आर्थिक संकट और खाद्य संकट की आशंका भी बढ़ गई है।
यूक्रेन की आबादी का लगभग एक चौथाई, करीब एक करोड़ लोग अपने घरों को छोड़ चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इनमें से या तो लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं या पोलैंड और मोल्दोवा जैसे पड़ोसी देशों में शरणार्थी के रूप में रहने को मजबूर हैं। इस युद्ध ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में भी आग लगाई।
यूक्रेन के खिलाफ युद्द में रूस को भी बड़ा नुकसान
रूस ने अपने नुकसान के ताजा आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन एनबीसी न्यूज के अनुसार नाटो के एक अधिकारी ने बताया कि अनुमान है कि युद्ध के पिछले चार हफ्तों में 7000 से 15000 के बीच रूसी सैनिक मारे गए हैं। अधिकारी ने कहा कि घायल, पकड़े गए या लापता हुए रूसी सैनिकों को जोड़ने पर यह संख्या 30,000 से 40,000 तक हो सकती है।
वहीं, यूक्रेन कि सूरज इस युद्ध से बुरी तरह बिगड़ गई है। खारकीव जैसे उत्तरी शहर बर्बाद हो गए हैं। दक्षिण में मारियोपोल अभी भी रूसी सेना की घेराबंदी में है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार मृतकों और घायलों सहित 2,500 से अधिक आम नागरिक हताहत हुए हैं। आशंका ये भी है कि असल कुल संख्या इससे बहुत अधिक हो सकती है।
रूस को पांच दिन में पता चल गया था- यूक्रेन जीतना आसान नहीं
पश्चिम के अधिकांश विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि इस तरह का हमला रूस की मूल योजना नहीं थी। हालांकि उसे अपनी सेना की खराब योजना का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। रूस को पांच दिनों में अहसास हो गया था कि यूक्रेन पर जीत हासिल करने का सफर आसान नहीं होने जा रहा है। हालांकि क्रेमलिन आधिकारिक तौर पर यही कह रहा है कि उसका मिशन सही दिशा में जा रहा है।
युद्ध के बीच पश्चिमी देशों और अमेरिका ने भले ही रूस के खिलाफ सीधी सैन्य कार्रवाई नहीं की लगाए गए प्रतिबंधों और बहिष्कारों का असर रूस पर पड़ रहा है। रूस को अलग-थलग करने की कोशिश से वहां की अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हुई है।
इस बीच यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की यूरोप और उसके बाहर एक नायक के रूप में उभरे हैं। वे कीव के अंदर से रोज अपने वीडियो प्रसारित करा रहे है जबकि ये जगह भी अब रूस के हमले की जद में है। साथ ही वे दुनिया के अलग-अलग देशों की संसद को संबोधित कर रहे हैं। कुल मिलाकर रूस के साथ सीधे तौर पर कोई बड़ा देश खड़ा होने की स्थिति में नहीं है। भारत और चीन जरूर रूस के खिलाफ खुलकर नहीं बोल रहे पर वे इसके साथ भी नजर नहीं आ रहे।