CG Coal Levy Scam: सुप्रीम कोर्ट में फर्जी दस्तावेज पेश, EOW-ACB चीफ समेत तीन अफसर तलब…NV News
Share this
रायपुर/(CG Coal Levy Scam): छत्तीसगढ़ में चर्चित कोल लेवी घोटाले में एक बड़ा मोड़ सामने आया है। आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) के वरिष्ठ अधिकारियों पर फर्जी दस्तावेज तैयार कर सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का आरोप लगा है। इस गंभीर मामले में न्यायालय ने अब तीनों अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर स्पष्टीकरण देने के आदेश जारी किए हैं।
अधिवक्ता गिरीश चंद्र देवांगन द्वारा दायर शिकायत पर न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी आकांक्षा बेक की अदालत ने यह कार्रवाई की है। अदालत ने EOW-ACB के चीफ अमरेश मिश्रा, एडिशनल एसपी चंद्रेश ठाकुर और डीएसपी राहुल शर्मा को नोटिस जारी करते हुए 25 अक्टूबर 2025 को उपस्थित होकर जवाब देने के निर्देश दिए हैं।
दरअसल, यह मामला उस कथित बयान से जुड़ा है, जो कोल लेवी घोटाले के आरोपित निखिल चंद्राकर का बताया गया था। आरोप है कि 16 और 17 जुलाई 2025 को उसे जिला जेल धमतरी से न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश कर धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराया गया बताया गया था। परंतु बाद में जांच में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि यह बयान वास्तव में न्यायालय में दर्ज नहीं किया गया था, बल्कि EOW कार्यालय में तैयार किया गया फर्जी दस्तावेज था, जिस पर केवल निखिल चंद्राकर के हस्ताक्षर कराए गए थे।
यह दस्तावेज बाद में सुप्रीम कोर्ट में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया। लेकिन फॉरेंसिक विशेषज्ञों की रिपोर्ट में यह साफ हुआ कि दस्तावेज में प्रयुक्त फॉन्ट न्यायालय के आधिकारिक फॉन्ट से मेल नहीं खाता। रिपोर्ट में कहा गया है कि दस्तावेज में मिश्रित फॉन्ट का उपयोग हुआ है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि यह न्यायालय में तैयार नहीं किया गया, बल्कि बाहरी स्रोत से कूटरचित किया गया दस्तावेज है।
शिकायतकर्ता अधिवक्ता देवांगन का कहना है कि इस दस्तावेज का उपयोग कर जांच अधिकारियों ने न केवल सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया, बल्कि निर्दोष लोगों को फंसाने और मामले की गंभीरता बढ़ाने का प्रयास किया। उन्होंने आरोप लगाया कि इस प्रकार का आचरण न केवल न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, बल्कि यह न्यायालय की प्रतिष्ठा के साथ भी खिलवाड़ है।
अदालत ने शिकायत की गंभीरता को देखते हुए तीनों अधिकारियों को व्यक्तिगत उपस्थिति के आदेश दिए हैं। न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि अगर आरोपों में दम पाया गया तो यह मामला फर्जीवाड़ा, न्यायालय की अवमानना और आपराधिक षड्यंत्र की श्रेणी में आ सकता है।
ज्ञात हो कि कोल लेवी घोटाला छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े आर्थिक अपराधों में से एक माना जाता है। इसमें करोड़ों रुपये के अवैध वसूली और राजनीतिक संरक्षण के आरोप हैं। इस घोटाले की जांच कई वर्षों से चल रही है, और अब यह नया मामला EOW-ACB की जांच प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
कानूनी जानकारों का कहना है कि अगर अदालत को फर्जी दस्तावेज पेश करने की बात साबित हो जाती है, तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 463 (कूटरचना), 466 (न्यायिक अभिलेख में जालसाजी) और 471 (फर्जी दस्तावेज का उपयोग) के तहत दंडनीय अपराध है। इसमें दोषी पाए जाने पर संबंधित अधिकारियों को कठोर सजा का सामना करना पड़ सकता है।
अब सबकी निगाहें 25 अक्टूबर की सुनवाई पर टिकी हैं, जब तीनों अधिकारियों को अदालत के समक्ष उपस्थित होकर अपने पक्ष में स्पष्टीकरण देना होगा। न्यायालय की अगली कार्रवाई यह तय करेगी कि मामला केवल प्रशासनिक लापरवाही का है या फिर सोची-समझी साजिश का हिस्सा।
