Bastar Dashara 2025: पीहू पर सवार होगी काछनगादी देवी,कांटों के झूले से खुलेगा दशहरे का द्वार…NV News

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जगदलपुर/(Bastar Dashara 2025):बस्तर का प्रसिद्ध दशहरा पर्व अपनी अनोखी परंपराओं और रहस्यमयी रस्मों के लिए जाना जाता है। इनमें से सबसे अहम रस्म काछनगादी है, जो आज रविवार शाम 7 बजे जगदलपुर में निभाई गई। इस मौके पर करीब 10 साल की बालिका पीहू दास पर काछनगादी देवी की आत्मा सवार होगी। परंपरा के अनुसार, देवी राजपरिवार को संकेत देंगी कि वे इस साल दशहरा मना सकते हैं।
दरअसल,इस रस्म के तहत राजपरिवार के सदस्य बेल के कांटों से बने विशेष झूले पर झूलते हैं। यह झूला किसी साधारण झूले की तरह नहीं होता, बल्कि पूरी तरह नुकीले कांटों से बना होता है। इसे झूलना देवी की स्वीकृति और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। रस्म पूरी होने के बाद ही बस्तर में दशहरे का आयोजन औपचारिक रूप से शुरू होता है।
काछनगादी देवी का आगमन:
पीहू दास को विशेष पूजा-अर्चना के बाद काछनगुड़ी ले जाया गया, जहां उन्होंने देवी की आराधना की। मान्यता है कि देवी की आत्मा पीहू पर सवार होकर आती है और उनके माध्यम से ही यह निर्णय होता है कि दशहरा उत्सव की अनुमति दी जाए या नहीं। काछनगादी रस्म के समय पीहू को विशेष वस्त्र पहनाए जाएंगे और उनके साथ पारंपरिक वाद्य यंत्रों की ध्वनि के बीच जुलूस निकाला जाएगा।
बस्तर दशहरा: 75 दिन का पर्व:
बस्तर दशहरा देश के सबसे लंबे चलने वाले त्योहारों में से एक है, जो करीब 75 दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत हरेली अमावस्या से होती है और समापन महापर्रब के साथ होता है। इस पर्व में बस्तर के विभिन्न जनजातीय समुदाय अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का प्रदर्शन करते हैं। खास बात यह है कि यहां दशहरे का केंद्र बिंदु देवी मावली माता की पूजा है, न कि रावण दहन।
सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन:
काछनगादी रस्म को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु जगदलपुर पहुंचते हैं। प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। पुलिस बल तैनात किया गया है, साथ ही मेडिकल टीम और दमकल विभाग की व्यवस्था भी की गई है।
बस्तर दशहरा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि संस्कृति, आस्था और परंपरा का अद्भुत संगम है। आज शाम होने वाली काछनगादी रस्म के साथ इस पर्व की औपचारिक शुरुआत होगी, जिसका इंतजार पूरे बस्तर के लोग सालभर करते हैं।