CG liquor scam:EOW ने कसी नकेल,3 जिलों में दबिश…NV News

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छत्तीसगढ़ /(CG liquor scam): प्रदेश में बहुचर्चित शराब घोटाले में रविवार को आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने रायपुर, दुर्ग और बिलासपुर जिलों में कड़ी कार्रवाई की। राज्य की राजधानी रायपुर समेत कुल 10 ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की गई है। छापेमारों में देवनगरी इलाके में शराब कारोबारी अवधेश यादव का भी घर शामिल है, जहां दस्तावेजों की जांच की गई।

दरअसल,यह मामला 2019-2022 की अवधि से है जब कांग्रेस सरकार सत्ता में थी। आरोप है कि इस दौरान शराब की लाइसेंसशुदा दुकानों में नकली (डुप्लीकेट) होलोग्राम लगाकर अवैध शराब बेची गई और राज्य सरकार को भारी राजस्व हानि हुई। इस घोटाले में कई उच्चस्तरीय अधिकारी, कारोबारी और पूर्व मंत्री शामिल पाए जा रहे हैं।

क्या कह रही ईओडब्ल्यू-जांच:

EOW की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस घोटाले में लगभग ₹3,200 करोड़ का आर्थिक फर्ज़ीखातरा निकल कर आया है, जो पहले अनुमानित राशि (करीब ₹2,160-₹2,200 करोड़) से कहीं ज़्यादा है।

ठोस सबूतों के आधार पर 29 आबकारी विभाग के अधिकारियों को आरोपी बनाया गया है, जिनमें कुछ सेवानिवृत्त भी हैं। इन अधिकारियों में जिला, सहायक जिला, सहायक आयुक्त एवं उप आयुक्त आदि शामिल हैं।

जांच में यह भी पाया गया कि “B-पार्ट लिकर” नामक एफिशियली पंजीकृत दुकानों में बिना सरकारी शुल्क/ड्यूटी भरे अतिरिक्त शराब बेची गई थी, जो सरकारी लाइसेंस की दुकानों से समान दिखने वाली होलोग्राम वाली बोतलों के ज़रिए की गई।

“डिस्टिलरी ,ट्रक,सरकारी दुकानों” की सप्लाई व्यवस्था गैरकानूनी तरीके से चलाई गई, जिससे न सिर्फ राज्य को राजस्व का भारी नुकसान हुआ, बल्कि अधिकारियों और कुछ राजनीतिक हस्तियों ने कमीशन भी लिया।

नामज़द लोग और कार्रवाई:

कवासी लखमा, पूर्व आबकारी मंत्री, इस मामले में गिरफ्तार हो चुके हैं। आरोप है कि उन्होंने इस पूरे घोटाले में सक्रिय भूमिका निभाई और उन्हें ईओडब्ल्यू के चार्जशीट में लगभग ₹64 करोड़ का हिस्सा मिला है।

इसके अलावा अरुणपति त्रिपाठी, अनवर ढेबर और अनिल तुतेजा जैसे नाम सामने आए हैं। EOW ने अब तक 13 लोगों को गिरफ्तार किया है और चार्जशीट सहित (और कुछ सह-चालान / फॉलो-अप दस्तावेज़) पेश किए हैं।

राजस्व को हुए नुकसान के अंदाज:

EOW की शिकायत है कि 2019-23 की अवधि में 15 जिलों में “अन-अकाउंटेड” शराब बेची गई, जो सरकारी दुकानों के जरिए होती थी लेकिन खरीद-बेच की आधिकारिक बही-खाता में दर्ज नहीं होती थी।

अतिरिक्त शराब बिना ड्यूटी और शुल्क जमा किए राज्य के कहीं-ना-कहीं भेजी गई थी, और उससे जो बिक्री हुई उसका पूरा राशी “सिंडिकेट” के फंड में चली गई।

इस कार्रवाई का महत्व और प्रभाव:

नया खुलासा यह है कि अनुमानित घोटाला राशि ₹2,161 करोड़ से बढ़कर लगभग ₹3,200 करोड़ तक पहुंच चुकी है। यह राशि सरकारी राजस्व के लिए एक बड़ी क्षति है। 29 अधिकारियों के खिलाफ आरोप है, जिनमें से 22 को सस्पेंड किया जा चुका है। इससे यह संकेत मिलता है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है।

छापेमारी और दस्तावेज जब्त करना इस बात की तरफ़ इशारा है कि जांच अब और गहरी होगी, और संभव है कि और भी प्रभावशाली नाम इस घोटाले में शामिल हों।

संभावित आगे की राह:

1.गिरफ्तारियों में और इज़ाफा हो सकता है, खासकर उनसे जो अभी सूचीबद्ध लेकिन हिरासत में नहीं हैं।

2.मामले की कानूनी प्रक्रिया में चार्जशीट, न्यायालय में सुनवाई, और सबूत-प्रस्तुति क्रम आगे बढ़ेगी।

3.राजनैतिक क्षेत्र में भी इस मामले की गूंज ज़्यादा होगी क्योंकि आरोपों में सांसदों, होलोग्राम ठेके, और नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप शामिल है।

4.मीडिया और नागरिक समाज से पारदर्शिता की मांग बढ़ेगी कि दोषियों को सजा हो और सरकारी नीतियों और लाइसेंसिंग प्रक्रिया में सुधार किया जाए।

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