“Hindi Divas Special”: पाक कला से शिक्षा तक, पद्मजा का अनोखा सफर…NV News

Share this
रायपुर/(Hindi Divas Special): महाराष्ट्र की रहने वाली पद्मजा विजय कुमार लाड ने हिंदी के प्रति अपने गहरे लगाव और समर्पण से एक प्रेरणादायक मिसाल कायम की है। कोल्हापुर में पली-बढ़ी पद्मजा की मातृभाषा मराठी है। विवाह के बाद जब वह रायपुर आईं, तो यहां के हिंदी भाषी वातावरण में शुरुआत में उन्हें थोड़ी झिझक महसूस हुई। लेकिन उन्होंने इसे चुनौती नहीं, बल्कि नए अवसर के रूप में लिया और धीरे-धीरे हिंदी को अपनाया।
पद्मजा न केवल खुद हिंदी में दक्ष हुईं, बल्कि अपनी दोनों बेटियों को भी हिंदी में पारंगत बनाया। वह मानती हैं कि भाषा किसी भी संस्कृति की आत्मा होती है, इसलिए इसे सीखना और आगे बढ़ाना जरूरी है। आज उनकी बेटियां धाराप्रवाह हिंदी बोलती और लिखती हैं।
हिंदी के प्रति अपने प्रेम को उन्होंने अपनी पाक कला में भी शामिल किया। पद्मजा ने कई पाक कला प्रतियोगिताओं में पश्चिमी महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के पारंपरिक व्यंजन तैयार किए। खास बात यह रही कि इन व्यंजनों की विधि उन्होंने हमेशा हिंदी में प्रस्तुत की। इससे न केवल लोगों को व्यंजनों की बारीकियां समझने में आसानी हुई, बल्कि हिंदी को भी समृद्धि मिली। उनकी इस अनूठी पहल के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी मिले।
पद्मजा बताती हैं कि उनके पाक कला वर्ग में मराठी, हिंदी, सिंधी और उर्दू भाषी छात्र शामिल होते हैं। ऐसे में वह हिंदी वर्णमाला और सही उच्चारण का सहारा लेकर सबको सिखाती हैं। इससे छात्रों के बीच भाषा की दूरी कम होती है और संवाद बेहतर होता है।
वह रायपुर के महाराष्ट्र मंडल की आजीवन सदस्य भी हैं और यहां हिंदी का सहारा लेकर मराठी सिखाने का कार्य कर रही हैं। उनके अनुसार, हिंदी जैसी व्यापक भाषा लोगों को जोड़ने का माध्यम बन सकती है।
पद्मजा का मानना है कि भाषा सिर्फ संवाद का साधन नहीं, बल्कि संस्कृतियों को जोड़ने वाली डोर है। अपने प्रयासों से उन्होंने यह साबित कर दिया कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो तो कोई भी भाषा सीखी और सिखाई जा सकती है। हिंदी दिवस पर उनका यह समर्पण समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।