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N.V.News नई दिल्ली: एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में मुस्लिम समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग में आरक्षण देने की मांग की है। उनका कहना है कि मुस्लिम समाज देश में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है, और इसे एससी आरक्षण के तहत शामिल करने से उनका पिछड़ापन दूर हो सकता है। इस मांग ने देशभर में बहस छेड़ दी है। एससी वर्ग के संगठनों और बुद्धिजीवियों ने इस बयान की तीव्र आलोचना की है।
मुस्लिम समाज को पहले से ही कई आरक्षण सुविधाएं:
ओवैसी की मांग का विरोध करने वाले तर्क दे रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय को पहले से ही अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के तहत आरक्षण का लाभ मिलता है। इसके अलावा, संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यकों को विशेष अधिकार दिए गए हैं, जिससे वे अपने शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन कर सकते हैं।
पुणे समझौता और एससी आरक्षण:
विरोधियों का कहना है कि अनुसूचित जाति का आरक्षण पुणे समझौते के तहत आया, जो डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच हुआ था। उस समय, मुस्लिम समुदाय अलग निर्वाचन मंडल का आरक्षण ले रहा था। एससी आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक भेदभाव और छुआछूत के शिकार जातियों को न्याय और समानता प्रदान करना था। आलोचकों का कहना है कि “इस्लाम समानता की बात करता है,” लेकिन मुस्लिम समुदाय में एससी जातियों का भेदभाव जारी है।
सच्चर कमेटी और मुस्लिम समाज की स्थिति:
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 0.8% मुस्लिम वे हैं जो अनुसूचित जाति से धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम बने हैं। इन्हें पहले से ही ओबीसी श्रेणी में आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है। ऐसे में एससी आरक्षण में मुस्लिमों को शामिल करना न केवल अन्य समुदायों के अधिकारों का अतिक्रमण होगा, बल्कि यह सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होगा।
एससी वर्ग में नाराजगी:
एससी समुदाय के नेताओं और संगठनों ने ओवैसी की मांग को अनुचित बताते हुए इसे आरक्षित सीटों पर कब्जा करने की “साजिश” करार दिया। उनका कहना है कि अनुसूचित जातियों को पहले ही अन्य कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, और मुस्लिम समुदाय को एससी कोटे में शामिल करना उनके अधिकारों का हनन होगा।
राजनीतिक गर्मी और प्रतिक्रियाएं:
ओवैसी के इस बयान से देश की राजनीति गरमा गई है। कई दल इस मुद्दे पर अपने विचार रख रहे हैं। एक तरफ मुस्लिम समुदाय से जुड़ी मांगों को समर्थन देने वाले हैं, तो दूसरी ओर एससी समुदाय की नाराजगी को नजरअंदाज करना मुश्किल हो रहा है।
मुस्लिम समुदाय को पहले से ही कई आरक्षण और विशेषाधिकार प्राप्त हैं। ऐसे में उन्हें एससी आरक्षण में शामिल करना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह एससी समुदाय के अधिकारों पर भी चोट करेगा। ओवैसी की इस मांग ने आरक्षण के मुद्दे पर नई बहस छेड़ दी है, जिसका समाधान निकट भविष्य में आसान नहीं दिखता।