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N.V. न्यूज़ जगदलपुर : मानव विज्ञान एवं जनजातीय अध्ययनशाला आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम तहत् “बाल दिवस” पर “आदिवासी बच्चों का शिक्षा एवं स्वास्थ्य” विषय में एक दिवसीय व्याख्यान कार्यक्रम किया गया। यह व्याख्यान कार्यक्रम डॉ. स्वपन कुमार कोले, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष के नेतृत्व में किया गया। इस कार्यक्रम में विभागीय शिक्षक, कर्मचारी तथा विद्यार्थियों द्वारा विषय पर व्याख्यान दिया गया।
कार्यक्रम में सर्वप्रथम डॉ. सुकृता तिर्की, सहायक प्राध्यापक, मानव विज्ञान एवं जनजातीय अध्ययनशाला के द्वारा विषय पर विस्तृत प्रकाश डाला गया, डॉ. तिर्की ने प्रमुखता से यह कहा कि जनजातीय समाज के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण भूमिका है, जनजातीय समाज जैसे-जैसे शिक्षा के स्तर में आगे बढ़ रहा है, जनजातियों का सामाजिक-आर्थिक विकास बढ़ रहा है। वहीं आगे डॉ. तिर्की ने अपने उद्बोधन में बताया कि पूर्व समय की अपेक्षा जनजातीय बच्चों का स्वास्थ्य स्तर आज अच्छा है, और ये सभी शिक्षा में सुधार का परिणाम है। अतः शिक्षा में व्यापक सफलता से जनजातीय बच्चों के स्वास्थ्य बेहत्तर होता जायेगा। इसलिए मानव विज्ञान के छात्र-छात्राओं को अपने आसपास के जनजातीय लोगों को उनके बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
इसके पश्चात् डॉ. आनंद मूर्ति मिश्रा, सहा. प्राध्यापक, मानव विज्ञान एवं जनजातीय अध्ययनशाला ने विषय पर अपना वक्तव्य रखा। डॉ. मिश्रा ने अमृत महोत्सव का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताया कि अमृत का संबंध अमरता है। चूंकि हम आजादी के 75वें वर्ष में है और हमें इस आजादी तथा इसमें सहायक रहे सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भूमिका को अमरत्व बनाये रखना है, इसलिए हम यह वर्ष अमृत साल के रूप में मना रहे हैं। आगे उन्होंने देश के प्रथम प्रधानमंत्री चाचा नेहरू (पं. जवाहर लाल नेहरू) का जीवन परिचय, उनके आदिवासी विकास दृष्टिकोण तथा बच्चों के प्रति प्रेम भावना इत्यादि पर विवरण रखते हुये बताया कि, आजादी बाद देश आर्थिक रूप से कमजोर था, साथ ही शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्रों में पिछड़े हुए था, तब नेहरू जी ने अपने दूर दर्षिता सोच का परिचय दिया। देश को द्वितीय विष्व युद्ध के बाद उभरे दो महाषक्तिषाली देशों के मध्य गुट निरपेक्ष रखा। तथा देश में कारखाने, स्वास्थ्य एवं शिक्षा केन्द्र खोले तथा आदिवासी विकास के लिए जनजातीय सलाहकार की नियुक्ति किया, पृथककरण, आत्मसात करण आदि सिद्धांतों का प्रतिपादन किया और आज इन्हीं का परिणाम है कि जनजातीय विकास पथ पर अग्रसर है। शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्रों में क्रमोत्तर वृद्धि कर रहा है।
इसके पश्चात् मानव विज्ञान तृतीय सेमेस्टर की छात्रा कु. शिवानी ठाकुर एवं प्रथम सेमेस्टर की छात्रा कु. वेनूरानी कोर्राम ने अपना मंतत्व रखा।
तत्पश्चात कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. स्वपन कुमार कोले, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, मानव विज्ञान एवं जनजातीय अध्ययनशाला ने उपरोक्त व्याख्यान एवं मंतत्वों पर संक्षिप्त में प्रकाश डालते हुए प्रमुख बिंदुओं को रखा-
1. शिक्षा समाज की प्रथम आवश्यकता है, जनजातीय समाज में अभी भी शिक्षा का व्यापक प्रसार किया जाना शेष है क्योंकि जनजातियों में शिक्षा का स्तर गैर जनजातीय लोगों से औसतन कम ही है। अतः जनजाति समाज में शिक्षा के न्यूनतम स्तर होने के प्रमुख समस्याओं पर प्रकाष डाला जाना चाहिए।
2. सरकार अपने स्तर में जनजातीय व गैर जनजातीय मातृ-शिशुस्वास्थ्य के संदर्भ में विभिन्न योजनाएँ क्रियान्वित कर रहा है। अतः मानव विज्ञान विषय के छात्र-छात्राओं को यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि कितने जनजातीय महिलाएँ स्वास्थ्य को लेकर सचेत है। कितने गर्भवती महिलाएँ समय-समय पर “शिशु-मातृ” के संदर्भित टीकाकरण लगाती है। कितने धात्री व गर्भवती महिलाएँ पोषण-आहार का लाभ लेती है और कितने महिलाएं किन कारणों से लाभ नहीं लेती है। ऐसे ही जननी सुरक्षा योजना, बाल संरक्षण, पास्को एक्ट इत्यादि के संदर्भ में जनजातियों में कितनी समझ व जानकारी है, यह जानने का प्रयास अपने अध्ययनों में करना चाहिए।
3. जनजातीय समाज के विकास में शिक्षा एवं स्वास्थ्य दोनों ही मुद्दे व्यापक है, अतः इनका प्रचार-प्रसार जमीनी स्तर में किया जाना चाहिए।
कार्यक्रम के अंतिम में विभाग के प्रयोगषाला तकनीशियन श्री शोभाराम नाग ने सभी शिक्षक व छात्र-छात्राओं का कार्यक्रम में सहभागी बनकर कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये धन्यवाद किया।
कार्यक्रम में कुल 21 छात्र-छात्राएँ सम्मिलित हुए। कार्यक्रम में मंच संचालन अतिथि व्याख्याता डॉ. रामचंद साहू ने किया।